


जब भी भारत वर्ष में पतिव्रत धर्म की बात आती है तो सबसे पहला नाम सती सावित्री का लिया जाता है। सावित्री वो जिसने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज तक को हरा दिया था। जिसके सतीत्व के आगे स्वयं मृत्यु की पराजय हुई। ऐसी सटी जिन्होंने सतीत्व के नए आयाम खड़े कर दिए। आज भी विवाहित स्त्रियाँ अपने अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत करतीं है।
इस वर्ष वट सावित्री पूजा 30 मई को मनाई जाएगी। इस दिन मुख्यतः वट वृक्ष या बरगद के पेड़ क पूजा का विशेष विधान है। देवी सावित्री राजर्षि अश्वपति की पुत्री थीं, जो अपने पिता की एकमात्र संतान थीं जिनका विवाह द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ। ये बात पूर्व निर्धारित थी के सत्यवान अल्प आयु हैं मगर ये सब जानते हुए भी सावित्री ने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया। देव ऋषि नारद के कथनानुसार सत्यवान की मृत्यु विवाह के एक वर्ष के भीतर ही होनी थी।
सत्यवान और सावित्री के विवाह को एक वर्ष पूर्ण होने आया था। जैसे जैसे तिथियाँ आगे बढ़ रही थी, सावित्री की चिंता और भी बढ़ रही थी। एक दिन सत्यवान आम की लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ा तभी अत्यंत तेज़ गति से सत्यवान धरती पर गिर पड़ा। उसके शरीर में भयावह पीड़ा थी। उसने सावित्री की गोद में अपना सर रखा और उसी समय मृत्यु को प्राप्त हो गया।
यमराज को आते देख सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों को मुख करा लेने का संकल्प लिया। जैसे ही यमराज सत्यवान के प्राण लिए वह से जाने लगे, सावित्री भी उनके पीछे पीछे चलने लगी। तब यमराज से सावित्री से इसका कारण पूछा। इसके जवाब में सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म का सार यमराज को सुनाया। जिससे अत्यंत प्रसन्न होकर यमराज ने सावित्री को अखण्ड सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया और साथ में 100 पुत्रों की माता होने का भी वरदान दिया | शास्त्रानुसार इस व्रत की अपार महिमा मानी गई है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ पूरे सोलह शृंगार कर के व्रत का अनुष्ठान करतीं है। जो भी विवाहित स्त्री इस दिन श्रद्धा पूर्वक व्रत करतीं है, उनको अखण्ड सुहाग का वरदान और साथ में पुत्रवती होने का भी आशीर्वाद मिलता है।