


|| प्रलय पयोधि-जले धृतवान् असि वेदम्
विहित वहित्र-चरित्रम् अखेदम्
केशव धृत-मीन-शरीर, जय जगदीश हरे ||
"हे केशव!
हे परमात्मा, जल प्रलय के समय आप ही की दया के कारण चारों वेदों की रक्षा हुई। आपकी सदा जय हो!"
श्री दशावतार स्तोत्र का आरम्भ भगवान् नारायण के पहले अवतार श्री मत्स्य जी की स्तुति से होता है। सतयुग में जब जल प्रलय ने पूरे संसार को डुबा दिया था तब वेदों की रक्षा के लिए भगवान् नारायण ने मत्स्य अवतार धारण किया।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार समय को चार युगों में बाँटा गया है। हर युग में जब जब विपत्ति की स्थिति उत्पन्न होती है तब तब भगवान् नारायण पृथ्वी पर अवतार लेते है। भगवान् के प्रमुखतः दस अवतार सबसे ज़्यादा प्रचलित है जिनमें से मत्स्यावतार सबसे प्रमुख माना जाता है।
जब इस कल्प के सतयुग का प्रारम्भ हुआ तब ब्रह्मा के मानस पुत्र महाराज मनु ने पृथ्वी के विस्तार का कार्यभार सम्हाला। मनु महाराज भगवान् नारायण के अनन्य भक्त थे और सदा अपने पिता के दिए कार्यभार के साथ साथ भगवान् की आराधना में भी लीन रहते थे। उनके दिल में हमेशा प्रभु के दर्शन की प्रबल इच्छा व्याप्त रहती जिसके लिए वो हमेशा भगवान् से प्रार्थना करते।
जैसे जैसे सतयुग का अंत निकट आने लगा, वैसे वैसे समुद्र का जल स्तर बढ़ने लगा। इस बात से महाराज मनु बिलकुल अनजान थे। एक दिन महाराज मनु सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे इसी बीच एक छोटी सी मछली उनकी अंजुलि में आ पहुँची। महाराज मनु उस मछली को पानी में वापस छोड़ने जाने ही वाले थे इतने में वो मछली महाराज से पानी में रहने वाली बड़ी मछलियों से उसकी जान बचाने की प्रार्थना करने लगी। महाराज मनु दयावश उस छोटी मछली को अपने महल में ले आये और उसको एक छोटे से जल के पात्र में रख दिया।
अगले दिन वो मछली का बच्चा उस पात्र जितना बड़ा हो गया। मछली अब इतनी बड़ी हो गई थी के उसका अब हिलना डुलना भी असंभव सा हो गया। इस घटना को देख महाराज मनु आश्चर्य में पढ़ गए और उस मछली को बड़े पात्र में रखवा दिया गया मगर फिर से वो मछली बड़ी हो गई और उसको फिर से स्थानान्तरित करना पड़ा। कुछ दिन बीते और वो मछली इतनी बड़ी हो गई के महल का कोई भी तालाब उसको रखने में समर्थ ना रहा।
मत्स्य के आकार में आने वाले इस असामान्य बदलाव को देख महाराज मनु को समझ आया के ये मत्स्य कोई सामान्य मत्स्य नहीं है। ये बात समझने के बाद जब महाराज मनु ने उस मत्स्य से उसके असली रूप में आने की प्रार्थना की तब उस मत्स्य रूपी भगवान् नारायण ने उन्हें अपने शंख चक्र गदा पद्म धारी चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन दिए और बताया के आज से सात दिन बाद पृथ्वी पर एक विशाल जल प्रलय आएगी जिसके प्रभाव से पूरी पृथ्वी जल से भर जाएगी। इस जल प्रलय के बाद सतयुग का अंत और त्रेता युग का आरम्भ होगा। इस जल प्रलय में वेदों सप्त ऋषि और सभी प्रजातियों को बचाने के लिए तुम एक बड़ी नाव बनाओ। उस नाव पर सप्तऋषि, वेद और सभी प्रजाति के जीव जन्तुओं के कुछ प्राणियों को सवार कर लेना।
ठीक सात दिन बाद पूरी पृथ्वी पर जल प्रलय प्रारम्भ हो गई। देखते ही देखते सारी पृथ्वी जल में समावृतः हो गई। भगवान् नारायण के आदेशानुसार मनु महाराज ने एक बड़ी नाव में सभी को बैठा लिया था। जब सारी पृथ्वी जल में डूब गई तब एक विशाल मत्स्य वहा प्रकट हुआ और शेषनाग की सहायता से उस नाँव को अपने ऊपर बाँध लिया। भगवान् मत्स्य ने उस भीषण जल प्रलय में नाव को डूबने नहीं दिया और तबतक संरक्षण प्रदान किया जब तक सारा पानी धरातल से हट नहीं गया। इसी संघर्ष के बीच भगवान् मत्स्य ने महाराज मनु, सप्तऋषि और बाकी जीव जन्तुओं को आध्यात्मिक ज्ञान भी दिया जिसको आज हम मत्स्य पुराण के रूप में जानते है। तो इस तरह संसार के रक्षक भगवान् नारायण ने मत्स्य रूप धारण कर सभी प्राणियों का संरक्षण किया।