


"नंदसि यज्ञ- विधेर् अहः श्रुति जातम्
सदय-हृदय-दर्शित-पशु-घातम्
केशव धृत-बुद्ध-शरीर जय जगदीश हरे"
"हे हरी ! परम दयालु भगवान् ! आप भगवान् बुद्ध के रूप में अवतरित हुए जिन्होंने यज्ञों और अनुष्ठानों के दौरान पशु बलि की निंदा की। हे केशव जगत के स्वामी श्री जगदीश आपकी सदा जय हो !"
भगवान् के इस अवतार का उद्देश्य किसी दैत्य का उद्धार नहीं बल्कि भ्रष्ट हो चुके सनातन समाज का उद्धार था। द्वापर युग में लिखी गई श्रीमद भगवत् जी से लेकर कलयुग में लिखी गई गीत गोविन्द तक भगवान् बुद्ध के भविष्य में प्राकट्य की बात की गई है। रघुकुल के संस्थापक इक्ष्वाकु जी का वंश जिसमें प्रभु राम भी प्रकट हुए, इसी इक्ष्वाकु वंश के एक भाग शाक्य वंश में भगवान सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ जो आगे जाकर भगवान् बुद्ध के नाम से प्रसिद्धि हुए। सिद्धार्थ गौतम कपिलवस्तु राज्य के युवराज थे।
जन्म के साथ ही सिद्धार्थ का भविष्य तय था, उसे भ्रष्ट हो चुकी सनातन धर्म की शाखाओं को काटना था। यह उस समय की बात है जब सनातन धर्म में विकृतियाँ अपनी चरम सीमा पर थी। यज्ञ के नाम पर अनैतिक कार्यों का बोलबाला हो चूका था। पशु बलि से लेकर नर बलि तक, शास्त्रों के नाम पर विधर्मियों का कारोबार था। धर्म ग्रंथों का गलत अर्थ निकाल कर अनैतिक कार्य किये जा रहे थे। श्रीमद भगवत् जी में श्री भगवान् के कलयुग में उद्भव की भविष्यवाणी पूर्व में ही की जा चुकी थी। भगवान् नारायण का प्राकट्य पूर्व निर्धारित था।
द्वापर युग में भगवान् को जन्म तो देवकी माँ ने दिया मगर पालन पोषण यशोदा रानी ने किया, बिलकुल ऐसे ही सिद्धार्थ जी को जन्म तो माया देवी ने दिया मगर उनका पालन पोषण देवी गौतमी ने किया जो उनकी छोटी माँ थीं। उनके जन्म के सात दिन बाद ही देवी माया का स्वर्ग गमन हो गया था। सिद्धार्थ एक संन्यासी बनेगा ऐसी भविष्यवाणी कई बार हो चुकी थी जिस से विचलित होकर राजा शुद्धोधन ने अपने पुत्र को हर संभव कर्स्ट से दूर रखने और हर संभव माया में उलझाए रखने का निश्चय किया।
राजा शुद्धोधन ने जो सिद्धार्थ के लिए महल, नौकर, भोजन आदि की शोभनीय व्यवस्था रखी जो भौतिक सुखों की परिकाष्ठा थी मगर फिर भी उसका मन कभी इन सुखों में नहीं रमा। उसको माया में और उलझने के लिए राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा से कराया मगर उनके कुछ भी प्रयास फलीभूत ना हुए।
सिद्धार्थ अब 30 वर्ष के हो चुके थे। उन्हें अब राज्य की बागडोर सँभालनी थी, इसलिए वह एक दिन देशाटन के लिए निकले। अपनी प्रजा के बीच जा कर उनको भौतिक यातनाओं का बोध हुआ। मृत्युलोक की वास्तविकता को जान कर सिद्धार्थ के मन में वैराग्य का अंकुर फूट चूका था। जिस दिन उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ उसी दिन सिद्धार्थ ने ग्रह त्यागने की ठान ली। उन्होंने अपनी सेवापरायण पत्नी और नवजात शिशु दोनों का त्याग कर जंगल की ओर चल दिए। व्याकुल सिद्धार्थ गौतम ने ग्रह त्याग कर वन गमन किया और जो वापस आये वो थे जगत गुरु गौतम बुद्ध।