ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक जातक कि कुंडली मे राहू और केतू एक दूसरे को 180अंश पर किसी न किसी भाव मे विच्छेदित करते है।स्पस्ट है कि राहू और केतू कि भावो मे उपस्थिति जातक के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इसी के साथ कालसर्प दोष तब बनता है जब सभी ग्रह राहू और केतू के मध्य मे विराजमान होते है।
कालसर्प दोष जैसा कि नाम से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसा दोष जो कि जातक के पुनर्जन्म से संबन्धित है। अर्थात जातक द्वारा पुनर्जन्म मे किए गये किसी जघन्य अपराध या फिर किसी श्राप से संबन्धित है। इस दोष का जातक कि कुंडली मे उपस्थित होनाउसकेजीवन पर गहरा संकट डाल सकती है।
कालसर्प दोष के लक्षण क्या है
ऐसे व्यक्ति मुख्य रूप से शारीरिक और आर्थिक समस्या से ग्रसित होते है। शारीरिक दुर्बलता संतान की उत्पत्ति मे बाधक साबित होती है। शरीर दुबला-पतला रोग ग्रस्त दिखाई पड़ता है। शारीरिक दुर्बलता के साथ साथ ऐसे व्यक्ति आर्थिक रूप से भी कमजोर होते है। दिनचर्या चला पाना भी बेहद मुश्किल होता है ।ऐसे व्यक्ति धनाढय भाव मे पैदा होते है इसी कारण इनका जीवन सदैव आर्थिक रूप से संकटग्रस्त रहता है। और शरीर रोगग्रस्त रहता है।
कालसर्प दोष का उल्लेख कहाँ है
यदि बात किजाए चिरस्मत ज्योतिषी की तो इसमे कही भी कालसर्प दोष का जिक्र देखने को नही मिलता है। परंतु वर्तमान समय मे ज्योतिष शास्त्र कि एक और पद्धती उपलबद्ध है -:जिसे हम “लाल किताब” के रूप मे जानते है। “लाल किताब” मे इसका विधिपूर्वक वर्णन मिलता है । इसके अंतर्गत कालसर्प दोष क्या है इसके लक्षण एवंउपायो पर समग्र रूप से प्रकाश डाला डाला गया है।
कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के उपाय
मुख्य रूप से देखा जाये तो कालसर्प दोष का प्रभाव जातक के मस्तिष्क पर पड़ता है। अर्थात सबसे पहले इसे मनोवैज्ञानिक रूप से दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए जातक को तप ,यज्ञ और ईश्वर की साधना का सहारा लेना चाहिए (जैसे कालभैरवास्टक का जाप ,शिव साधना,रुद्राभिषेक , नारायण वंदना आदि। इसमे सर्वाधिक उपयोगी नारायण वंदना को माना गया है क्योकि पुराणो के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने ही अपने सुदर्शन चक्र पर बैठे दानव राहू को दो टुकड़ो मे विच्छेदित कर अन्तरिक्ष मे 180 अंश पर स्थापित कर दिया था जिससे की ये दोनों आपस मे कभी मिल न सके)
इन सब के इतर यदि जातक मे भक्ति भाव की कमी है या समय का अभाव है तो ऐसे समय मे दान का रास्ता ही सर्वमान्य है। जैसे शनिवार के दिन या साल के कुछ विशेष अवसरो पर नाग-नागिन का नदी मे विसर्जन, कुष्ट रोगियो या गरीबो को नीला वस्त्र या लोहे की वस्तु दान मे देना। कुत्ते को खाना खिलाना मुख्य रूप से भैरव मंदिर मे क्योंकि कुत्ते कोभैरवकि सवारी माना गया है। शिवमंदिर मे ध्वजारोहण भी इसके उपायो मे से एक है।
इन सब उपायो के द्वारा कालसर्प दोष से मुक्ति मिल सकती है। परंतु इन उपायो को अपनाने के बाद भी यदि जातक को किसी प्रकार कि समस्या उत्पन्न होती है तो उसके निराकरण के लिए जन्म कुंडली का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक है।
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(Updated Date & Time :- 2020-02-10 10:36:08 )
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