दोस्तों जैसा की आप सभी जानते है कि भारतीय परंपरा और हिन्दू रीति रिवाज़ों में नवरात्रो को कितना महत्व दिया जाता है। कहते है कि इन नौं दिनों में माँ दुर्गा अपने नौ रूपो का दर्शन देती हैं । तो आज इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे कब से और क्यों की जाती है माँ दुर्गा के इन अलग अलग रूपो की आराधना। इस लेख में माँ कुष्मांडा के जन्म के संदर्भ में बात की जायेगी.
माँ कूष्मांडा के अवतरण की कथा
भारतीय धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नही था तब चारो तरफ बस अन्धकार ही अन्धकार व्याप्त था। उस वक़्त माँ कुष्मांडा ने अपने उदर से अंड उत्पन्न कर इस समस्त ब्रह्माण्ड कि रचना की और जगत में कुष्मांडा देवी के नाम से विख्यात हुई। अतः सीधे तौर पर यह स्पस्ट है कि जिनसे समस्त सिद्धियों का ही सृजन हुआ हो उसके स्वरूप को भला कोई कैसे जान सकता है। माँ का यह स्वरुप अष्ट भुजाओं वाला है। जिसमे अस्त्र शस्त्रों के साथ जप मालाएं भी उनके हस्तो में सुशोभित है। माँ के मुख का तेज़ सूर्य के समय दिखाई पड़ता है।
देवी के इसी स्वरुप की आराधना नवरात्री के चौथे दिन की जाती है।
इस लेख के माध्यम से हमने माँ दुर्गा के चतुर्थ स्वरुप माँ कुष्मांडा की कथा विधिपूर्वक बताया है । माँ दुर्गा के अन्य रूपो की कथा आगे के लेखों में पढ़ने को मिलेगी।
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(Updated Date & Time :- 2020-03-28 13:20:21 )
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