शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के प्रथम स्वरुप “माँ शैलपुत्री” का पूजन किया जाता है साथ ही विधि-विधान से कलश स्थापना कर मातारानी का स्वागत करने की परंपरा है।
देवी सती के रूप में आत्मदाह के बाद माता पार्वती ने माँ शैलपुत्री रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया उनका रूप अत्यंत शांत और सहज है, वह बैल की सवारी करती हैं, उनके एक हाथ में त्रिशूल और दुसरे हाथ में कमल का फूल होता है। माँ शैलपुत्री की भक्तिभाव से पूजा करने पर व्यक्ति को स्थिर और मजबूत रहने की क्षमता प्राप्त होती है।
ज्योतिष के अनुसार माँ शैलपुत्री चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करती है, इसलिए जिन व्यक्तियों की कुंडली में चंद्र ग्रह से सम्बंधित दोष हो उन्हें शैलपुत्री की पूजा जरूर करनी चाहिए।
नवरात्री के पहले दिन इस विधि से करें कलश स्थापना
नवरात्रि की शुरुआत पहले दिन कलश स्थापना के साथ की जाती है और कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर को सुबह 6:19 से लेकर 7:06 बजे तक रहेगा। शारदीय नवरात्रि में माँ दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए जरूरी है की कलश की स्थापना शुभ मुहूर्त और पूरे विधि विधान के साथ की जाएं।
कलश स्थापना विधि
1. सुबह जल्दी स्नान कर रंग के वस्त्र पहनें और मंदिर की सफाई करें।
2. माता की चौकी तैयार कर सजाएं।
3. मिट्टी के गोल बर्तन में सप्त धान(सात प्रकार के अनाज) या जौं बोयें और प्रतिदिन पानी दें ।
4. एक कलश में पानी और थोड़ा गंगाजल भरकर अशोक या आम के पत्ते लगाएं।
5. पूजा वाला नारियल लेकर उसे लाल कपड़े से लपेट दें।
6. नारियल को कलश पर लगाएं और शुभ मुहूर्त में जौं वाले बर्तन के पास कलश को स्थपित कर दें।
7. पूजा की थाली तैयार कर ज्योत जलाएं।
8. माँ शैलपुत्री जी को फूल, अक्षत अर्पित करें।
9. माँ शैलपुत्री जी की आरती उतारें, यदि व्रत रखना है तो व्रत का संकल्प लेकर प्रार्थना करें।
माँ शैलपुत्री के इन मंत्रो का करें जाप
देवी शैलपुत्र्यै नमः॥ वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:॥
ऊं शं शैलपुत्री देव्यै: नम: