जानिये माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना की पूजा विधि

जानिये माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना की पूजा विधि

माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है! चैत्र नवरात्री का दूसरा दिन (23-03-23) को है। भगवान शिव के साथ विवाह करने के लिए माँ पार्वती के उपवास के प्रतीक के रूप में इस दिन व्रत रखा जाता है। इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करें। यह प्यार और समर्पण को दर्शाता है।

 

कथा: देवी पार्वती ने पत्तेदार सब्जियों, फूलों और फलों के आहार पर 1000 वर्षों तक और बिल्वपत्रों पर 3000 वर्षों तक उपवास किया। उन्होंने गर्मी की चिलचिलाती धूप, कठोर सर्दियों और तूफानी बारिश का सामना किया। उनकी इस कठोर तपस्या देखकर, भगवान ब्रह्मा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उन्हें भगवान शिवजी की पत्नी होने का आशीर्वाद दिया।

महत्व:
ऐसा माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी कुण्डली मे मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। जातक मंगल ग्रह की शक्ति प्राप्त करने और अपने जीवन में भाग्योदय करने में सक्षम होता है। उनका आसन (कमल) ज्ञान का प्रतीक है, और सफेद साड़ी पवित्रता का प्रतीक है। इस दिन की उपासना से जातक त्याग, वैराग्य और संयम अपने व्यवहार में विकसित करता हैं।
व्रत संकल्प (मंत्र)
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे (भक्त का नाम वर्ष सहित) चैत्रशुक्लप्रतिपदि अमुकवासरे (भक्त का नाम) प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः (भक्त का गोत्र)
अमुकनामाहं (भक्त का नाम) भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
नोट: अमुक के स्थान पर नाम, गोत्र और वर्ष अवश्य लिखें!

अर्थ - ॐ विष्णु, विष्णु, विष्णु, आज, युग के अगले भाग में, श्री श्वेतवराह कल्प में, जम्बूद्धीप में, भारत देश में, अमुकनाम, (भक्त का नाम) संवत्सर,(वर्ष) चैत्र शुक्ल प्रतिपदी अमुकवासर, (भक्त का नाम) नवरात्र पर्व) मैं देवी दुर्गा की कृपा के लिए व्रत रखूंगा / रखूंगी।
नोट: अमुक की जगह नाम, गोत्र और वर्ष याद रखें!

स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमो नमः नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
अर्थ - जो देवी मां ब्रह्मचारिणी के रूप में सभी प्राणियों में स्थित हैं। "उसे प्रणाम, उसे प्रणाम, उसे प्रणाम!"

ध्यान
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

आरती
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥
ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सरल संसारा॥
जय गायत्री वेद की माता। जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥
कमी कोई रहने ना पाए। उसकी विरति रहे ठिकाने॥
जो तेरी महिमा को जाने। रद्रक्षा की माला ले कर॥
जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर। आलस छोड़ करे गुणगाना॥
माँ तुम उसको सुख पहुँचाना। ब्रह्मचारिणी तेरो नाम॥
पूर्ण करो सब मेरे काम। भक्त तेरे चरणों का पुजारी॥
रखना लाज मेरी महतारी।

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