श्राद्ध में पितृ पूजा की सही विधि और महत्व

श्राद्ध में पितृ पूजा की सही विधि और महत्व

हमारे जीवन में बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद और साया एक अनमोल वरदान के सामान है लेकिन समय के साथ, जब वे हमारे बीच नहीं रहते, तब उनकी आत्मा की शांति के लिए हम श्राद्ध की प्रक्रिया अपनाते हैं। उनके जीवित रहते हुए हम उनकी सेवा कर सकते हैं, लेकिन उनके स्वर्गवासी होने के बाद, उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए श्राद्ध करना एक अनिवार्य कार्य माना जाता है। हमारे पूर्वजों के कारण ही हमारा जन्म हुआ है, और सनातन धर्म में श्राद्ध की परंपरा अत्यंत प्राचीन है जिसे पितृ पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, इस परंपरा के अनुसार हमें उन पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा और कर्म करने चाहिए, जो इस दुनिया से विदा हो चुके हैं। हिन्दू परंपरा के अनुसार पितृपक्ष में श्राद्ध तर्पण करना अपने पूर्वजों से आशीर्वाद प्राप्ति का एक पर्व माना जाता है, एस्ट्रोसाइंस के इस विशेष ब्लॉग में आज हम आपको श्राद्ध की तिथि के आरंभ, समापन, महत्व और पितृ पूजा से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करने जा रहे हैं।

 

श्राद्ध का आरंभ  

भाद्रमास में शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है और इस साल 17 सितम्बर 2024, मंगलवार से श्राद्ध तिथि का आरंभ हो रहा है तो वहीं इसका समापन 2 अक्टूबर 2024, को होगा। इस अवधि में विधिपूर्वक श्राद्ध अनुष्ठान किया जाता है जिसमें विभिन्न पारंपरिक प्रथाओं का पालन किया जाता है जैसे तर्पण, पिंडदान, पूजा-प्रार्थना ताकि पितरों की आत्मा को शान्ति मिल सके साथ ही उनका आशीर्वाद हमें प्राप्त होता रहे।

 

पितृ पूजा की सही विधि 

पूर्वजों या पितरों की आत्मा शान्ति के लिए श्राद्ध अनुष्ठान किया जाता है इसलिए ध्यान रहें की पूजा विधिनुसार हो, इसके लिए पंडित या कुशल ज्योतिषी से सलाह लें ताकि पूजा में कोई गलती ना हो। पितृ पूजा में सबसे पहला चरण पिंडदान कहलाता है।

 

पिंडदान:- इसमें चावल, चीनी, शहद आदि के पिंड बनाकर पितरों को प्रसाद के रूप   में अर्पित करते हैं, पिंडदान पूरे मन और श्रद्धा से करना चाहिए।

 

तर्पण :- इसमें काले तिल, जौं, कुश और सफेद आटे को मिलाकर जल चढ़ाया जाता है, मान्यता है की तर्पण की विधि से पितृ प्रसन्न होते हैं। 

 

ब्राह्मण भोज :- खास भोजन तैयार किया जाता है जो पहले कौवों को खिलाया जाता है उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाकर पितृ पूजा या श्राद्ध आनुष्ठान का समापन किया जाता है। 

 

दान-पुण्य :- श्राद्ध अवधि में दान करना बेहद शुभ माना जाता है इसमें काले तिल, सोने, वस्त्र और खाद्य वस्तुओं का दान करना चाहिए साथ ही दीन-हीन और गरीबों को खाना खिलाना चाहिए।

श्राद्ध अनुष्ठान में मंत्रोचार बहुत महतवपूर्ण होते हैं जिसके जरिए पितरों की इस दुनिया से मुक्ति और उनकी आत्मा की शान्ति की प्रार्थना की जाती है।



क्यों जरूरी है श्राद्ध ?

शास्त्रों के अनुसार पितृऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध करना जरूरी है, गरूड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के तेरह दिन के बाद मृतक की आत्मा यमपुरी जाने के लिए यात्रा की शुरुआत करती है जिसमें सत्रह दिन का समय लगता है जिसके बाद आत्मा यमपूरी की यात्रा के लिए निकलती है जहाँ पहुंचने में उसे 11 महीने का समय लगता है और ऐसी मान्यता है की इन 11 महीनों में उन्हें भोजन या जल नहीं मिलता इसलिए परिवार द्वारा किया गया पिंडदान और तर्पण ही उनकी इस यात्रा में भूख प्यास मिटाता है, इसलिए कहा जाता है की मृत्यु के प्रथम वर्ष में श्राद्ध पूजा बहुत जरूरी होती है।


हमें आशा है कि एस्ट्रोसाइंस ब्लॉग के माध्यम से प्रदान की गई श्राद्ध से जुड़ी ये महत्वपूर्ण जानकारियाँ आपके लिए उपयोगी साबित होंगी और इस पवित्र अनुष्ठान को सही ढंग से समझने और पालन करने में आपकी मदद करेगी।

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