रक्षाबंधन भद्रा का प्रभाव

इस रक्षाबंधन रहेगा भद्रा का प्रभाव, जानें शुभ मुहूर्त

सावन का यह पवित्र महीना इस साल पूर्णिमा के दिन समाप्त हो रहा है और सावन महीने की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया जाता है। भाई-बहन के इस पवित्र त्यौहार का विशेष महत्व है जो की भावनाओं और सवेंदनाओ से जुड़ा होता है जिसमें बहने अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र जिसे राखी रहते हैं, बांधकर उनकी लंबी उम्र और बेहतर स्वास्थ्य की कामना करती है तो वहीं भाई भी बहन को उपहार देकर उसकी रक्षा का वचन देते हैं। एस्ट्रोसाइंस के इस ख़ास ब्लॉग में आज हम आपको रक्षाबंधन के महत्व, सही तिथि और राखी बाँधने के शुभ मुहूर्त की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं।

 

तिथि और राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त

 

इस साल रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त, 2024 को मनाया जाएगा लेकिन इस दिन सुबह से भद्रा पड़ रही है इसलिए राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1:34 बजे से लेकर रात 9:07 बजे तक रहेगा। ज्योतिष के अनुसार भद्रा के समय में कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए इसलिए शुभ मुहूर्त में ही रक्षाबंधन का त्यौहार मनाएं इस बात का विशेष ध्यान रखें।

रक्षाबंधन से सम्बंधित कथाएं

 

मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पतंग उड़ाते हुए श्री कृष्ण जी के हाथ में चोट लग जाने पर द्रौपदी ने अपने वस्त्र से एक टुकड़ा फाड़कर उनके हाथ पर बाँध दिया था, द्रौपदी के इस व्यवहार को स्वीकार करते हुए श्री कृष्ण जी ने उन्हें उनकी रक्षा का वचन दिया था और इसी रक्षा वचन को निभाते हुए उन्होंने द्रौपदी की चीरहरण से रक्षा की थी।


एक अन्य पौराणिक कथानुसार देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ा जो की लगातार 12 वर्षों तक चला जिसमें असुरों ने लगभग तीनो लोको पर अपना राज्य घोषित कर दिया था सभी देवता चिंतित थे ऐसे में देवराज इंद्र गुरु बृहस्पति की शरण में जा पहुचें और श्रावण पूर्णिमा को रक्षा विधान पूरा किया जिसमें बोले गए शक्तिशाली मंत्रो का इन्द्रदेव की पत्नी ने भी उच्चारण करते हुए एक रक्षा-सूत्र तैयार किया और उसे इन्द्रदेव के दाहिने हाथ पर बाँध दिया इस रक्षा-सूत्र से प्राप्त शक्ति के कारण देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त कर अपने शासन को फिर से प्राप्त किया।

 

रक्षाबंधन का ज्योतिषीय महत्व


हिन्दू परंपरा में रक्षाबंधन का पर्व एक विशेष महत्व रखता है इसे राखी पूर्णिमा भी कहा जाता है, पौराणिक समय से ही बहनों द्वारा भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर, माथे पर तिलक लगाकर उनकी बेहतर स्वाथ्य और दीर्घ आयु की प्रार्थना की जाती है।प्राचीन समय में इस रक्षा- सूत्र को माता लक्ष्मी ने राजा बालि की कलाई पर बांधकर उपहार के रूप में राजा बालि से भगवान विष्णु को पताललोक से वापस भेजने का अनुरोध किया था।

 

ज्योतिष के अनुसार रक्षाबंधन पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और चंद्रमा को भावनाओं के गुणों से देखा जाता है ऐसे में राखी बाँधने से भाई-बहन का रिश्ता अधिक मजबूत होता है साथ ही इस दिन उपहार के लेन-देन से बृहस्पति की कृपा प्राप्त होती है जिससे जीवन और रिश्तों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर हम प्रार्थना करते हैं की सभी भाई-बहनों के जीवन में प्रेम, विश्वास और सौहार्द बना रहे।

आप सभी को गुरुदेव जी.डी.वशिष्ठ जी की ओर से रक्षाबंधन के पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाएं।


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