भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक छवि को उकेरने वाले त्योहारों में दीपावली का स्थान सर्वोपरि है। यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक सामूहिक चेतना है, एक ऐसा भावनात्मक सूत्र है जो करोड़ों हृदयों को एक साथ धड़कने पर मजबूर कर देता है। दीपावली वह पावन क्षण है जब अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य, और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय का उत्सव मनाया जाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन की सबसे गहन विषमताओं के बीच भी, एक छोटा सा दीपक अपार उम्मीद और आशा का संचार कर सकता है। हर वर्ष की भांति, वर्ष 2025 में भी दिवाली पूरे देश में अतुलनीय हर्ष, उल्लास और आध्यात्मिक उत्साह के साथ मनाई जाएगी, जिससे हमारे जीवन में नई ऊर्जा और नई दिशा का संचार होगा।
दीपावली 2025: तिथि, मुहूर्त और खगोलीय महत्व
वर्ष 2025 में दीपावली का पर्व सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को पड़ रहा है। यह दिन केवल एक कैलेंडर की तिथि भर नहीं है, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत ही शुभ और ऊर्जावान संयोग लेकर आ रहा है।
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त: इस वर्ष लक्ष्मी, गणेश और कुबेर देव की पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय शाम 4:30 बजे से 5:56 बजे तक रहेगा। यह अवधि 'प्रदोष काल' के अंतर्गत आती है, जिसे हिंदू शास्त्रों में देवी लक्ष्मी की उपासना के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इस समय आकाश में एक विशेष प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो भक्ति और मनोकामना पूर्ति के लिए अत्यंत अनुकूल होता है।
ज्योतिष के अनुसार, दीपावली के दिन सूर्य और चंद्रमा की विशिष्ट स्थिति मनुष्य की आंतरिक चेतना को जागृत करने में सहायक होती है। यह वह समय है जब ब्रह्मांडीय ऊर्जाएं हमारे अंतर्मन को शुद्ध करके जीवन में नई सकारात्मकता भरने का कार्य करती हैं। इसीलिए इस दिन किया गया हर दीपदान, हर मंत्रोच्चार और हर पूजन-अर्चन विशेष फलदायी हो जाता है।
दीपावली का गहरा अर्थ और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
'दीपावली' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' (अर्थात् दीपक) और 'आवली' (अर्थात् श्रृंखला) से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'दीपों की पंक्ति'। परंतु इसका दार्शनिक अर्थ इससे कहीं अधिक गहरा है। यह हमारे भीतर के आत्मिक प्रकाश को जागृत करने और अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने का प्रतीक है।
दीपावली मनाने के पीछे अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक कारण जुड़े हैं:
1. भगवान राम की अयोध्या वापसी: सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लंकापति रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके आगमन की खुशी में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर पूरी अयोध्या नगरी को प्रकाशित किया था। यह घटना केवल एक राजा की वापसी नहीं, बल्कि धर्म की अधर्म पर, न्याय की अन्याय पर, और सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक बन गई।
2. महालक्ष्मी का अवतरण: एक अन्य मान्यता यह है कि इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था और वे क्षीरसागर से धरती पर आई थीं। इसीलिए इस रात उनकी पूजा करके उन्हें आमंत्रित किया जाता है।
3. भगवान विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी का उद्धार: पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगकर संपूर्ण ब्रह्मांड को उनके अहंकार से मुक्त कराया था और लक्ष्मी जी को मुक्त करवाया था।
4. महाप्रयाण दिवस (महावीर स्वामी): जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह दिन उनके 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के 'निर्वाण' (मोक्ष) का दिवस है।
5. बंदी चौदस (नरक चतुर्दशी): दिवाली से एक दिन पहले के दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध करके 16,000 कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त कराया था।
इन सभी घटनाओं का सार एक ही है - बुराई पर अच्छाई की जीत और अंधकार पर प्रकाश की विजय। दीपावली इसी विजयगाथा का जीवंत उत्सव है।
दीपावली की बहुरंगी तैयारियाँ: स्वच्छता से सजावट तक
दीपावली की तैयारियाँ त्योहार से कई दिन, यहाँ तक कि सप्ताह पहले से ही आरंभ हो जाती हैं। यह केवल बाहरी सफाई और सजावट का ही नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि और मानसिक तैयारी का भी समय होता है।
1. घर की शुद्धि और सज्जा: मान्यता है कि माँ लक्ष्मी स्वच्छ, सुव्यवस्थित और प्रकाशयुक्त घर में ही निवास करती हैं। इसीलिए लोग घरों की गहरी सफाई, रंगाई-पुताई और मरम्मत का कार्य आरंभ कर देते हैं। इस प्रक्रिया का प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि हम वर्ष भर की जमी हुई धूल और क्लेश को अपने जीवन और घर से बाहर निकाल रहे होते हैं।
2. दीप, प्रकाश और रंगोली: घर के मुख्य द्वार, बालकनी और आँगन में रंग-बिरंगी रंगोलियाँ सजाई जाती हैं। ये रंगोलियाँ न केवल सौंदर्यबोध का प्रतीक हैं, बल्कि इनमें प्रयुक्त रेखाएँ और चिह्न सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने का कार्य करते हैं। दीपों की कतारें, मोमबत्तियाँ और आजकल के रंग-बिरंगे बल्ब घर-आँगन को एक दिव्य स्वरूप प्रदान कर देते हैं।
3. नई खरीदारी (दिवाली की धमाकेदार डिमांड): दीपावली को नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर लोग नए वस्त्र, बर्तन, सोना-चाँदी, गाड़ी, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि की खरीदारी करते हैं। यह परंपरा न केवल आर्थिक समृद्धि को दर्शाती है, बल्कि जीवन में नएपन और उत्साह के स्वागत का भी प्रतीक है। बाजार इस समय चहल-पहल और रौनक से भर जाते हैं।
दीपावली पूजन: एक पवित्र विधान
दीपावली की संध्या को किए जाने वाली लक्ष्मी-गणेश पूजा इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र क्षण होता है। यहाँ इसकी विस्तृत विधि दी गई है:
पूर्व तैयारी:
1. सबसे पहले घर के मंदिर और पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें।
2. एक नए या स्वच्छ वस्त्र (अधिकतर पीले या लाल रंग के) को आसन के रूप में बिछाएँ।
3. चाँदी, पीतल या मिट्टी की बनी लक्ष्मी-गणेश जी की प्रतिमाएँ स्थापित करें। मिट्टी की मूर्तियाँ पर्यावरण की दृष्टि से अधिक शुभ मानी जाती हैं।
4. पूजा थाली में रोली, अक्षत, फूल, धूप-दीप, कपूर, मिठाई, फल और पान के पत्ते तैयार रखें।
5. अपने सभी धन, आभूषण, लेखन सामग्री और व्यापारिक बहियों को पूजा स्थल के समीप रखें। मान्यता है कि इससे माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद इन पर स्थिर होता है।
पूजन विधि:
1. सबसे पहले घर के मुख्य द्वार और पूजा स्थल पर एक-एक दीपक जलाएँ।
2. भगवान गणेश की पूजा सर्वप्रथम करें, क्योंकि वे विघ्नहर्ता हैं। उन्हें दूर्वा घास और मोदक अर्पित करें।
3. इसके बाद माँ लक्ष्मी का आह्वान करते हुए उनकी पूजा करें। उन्हें लाल फूल, कमल का फूल, हलवा-पूरी, खील-बताशे और मिठाइयाँ अर्पित करें। चाँदी का सिक्का विशेष रूप से अर्पित करना शुभ माना जाता है।
4. इसके पश्चात कुबेर देव, जो धन के कोषाध्यक्ष हैं, की पूजा करें।
5. पूरे मन से लक्ष्मी-गणेश के मंत्रों का जाप करें और आरती करें। परिवार के सभी सदस्य एक साथ आरती में भाग लें।
6. पूजन के बाद प्रसाद को सभी में वितरित करें और पूजन में प्रयुक्त जल को घर के आँगन में छिड़क दें।
यह पूजन विधि न केवल एक रीति-रिवाज है, बल्कि मन की एकाग्रता, कृतज्ञता और नई आशाओं को संजोने का एक सशक्त माध्यम है।
ज्योतिषीय एवं आध्यात्मिक प्रकाश: अंधकार से प्रकाश की यात्रा
दीपावली का मूल संदेश आध्यात्मिक चेतना का जागरण है। ज्योतिष और आध्यात्म दोनों ही इस दिन को आत्मशुद्धि और चेतना के विस्तार के लिए उत्तम मानते हैं। घर में जलाए जाने वाले हर दीपक के पीछे यही भाव छिपा होता है - "तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात "मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।"
यह दिन हमें अपने भीतर झाँकने और आलस्य, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी पाँच अंधकारों को दूर करने का स्मरण दिलाता है। जब हम अपने मन का दीपक जलाते हैं, तो बाहरी दीपों की रोशनी और भी अधिक सार्थक हो उठती है। दीपावली हमें यही प्रेरणा देती है कि हम न केवल अपना घर, बल्कि अपना हृदय भी प्रेम, करुणा और उदारता के प्रकाश से भर दें।
सामाजिक सद्भाव और साझा खुशियाँ
दीपावली का उत्सव व्यक्तिगत सुख-समृद्धि तक सीमित नहीं है। इसका एक बहुत बड़ा सामाजिक पक्ष भी है। यह पर्व पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में नई मिठास भरने का कार्य करता है।
1. मेल-मिलाप का पर्व: इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों और मित्रों से मिलते हैं, मिठाइयाँ और उपहार बाँटते हैं। पुराने मनमुटावों को भूलाकर गले मिलते हैं और नए सिरे से रिश्तों की नींव रखते हैं।
2. सामाजिक सेवा और दान: दीपावली का असली आनंद तब और बढ़ जाता है जब हम इसकी खुशियाँ दूसरों के साथ बाँटते हैं। कई सामाजिक संस्थाएँ और व्यक्ति गरीबों, बेसहारा बच्चों और जरूरतमंद परिवारों के बीच कपड़े, खाद्य सामग्री और मिठाइयाँ वितरित करते हैं। किसी जरूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान लाना ही दीपावली की सच्ची सार्थकता है।
3. आर्थिक एकीकरण: यह त्योहार आर्थिक गतिविधियों को भी गति प्रदान करता है। छोटे दुकानदारों, कारीगरों, कुम्हारों और मजदूरों के लिए यह समय अत्यंत व्यस्त और लाभकारी होता है, जिससे समाज के हर वर्ग को इसका लाभ मिलता है।
दिवाली पर लाल किताब के ज्योतिष उपाय
ज्योतिष उपायों के माध्यम से व्यक्ति जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि को आकर्षित कर सकता है। इनमें से कुछ प्रभावी उपाय इस प्रकार हैं:
1. सर्वप्रथम, एक शक्तिशाली अष्टसिद्धि यंत्र घर के मंदिर में विधिवत स्थापित करें। इस यंत्र की नियमित रूप से पूजा करने से आठों सिद्धियों की प्राप्ति के मार्ग खुलते हैं और जीवन में आश्चर्यजनक सफलता मिलती है।
2. माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मंदिर में सफेद फूलों की माला, सफेद कमल, सफेद मिठाइयाँ जैसे खोया बर्फी, और गुलाब का इत्र अर्पित करें। सफेद रंग शांति और शुभता का प्रतीक है, जो धन प्राप्ति के मार्ग की बाधाएँ दूर करता है।
3. धन की स्थिरता के लिए एक छोटी चाँदी की डिब्बी में केसर रखकर उसे अपने तिजोरी या लॉकर में सुरक्षित स्थान पर रखें। ऐसा माना जाता है कि यह उपाय धन के आगमन को बढ़ावा देता है और उसे बचाए रखने में सहायक होता है।
4. अपने दैनिक जीवन में केसर का तिलक लगाना भी अत्यंत फलदायी है। इससे न केवल मस्तिष्क को शांति मिलती है बल्कि माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा भी बनी रहती है, जिससे आर्थिक समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
दीपावली सूत्र: क्या करें और क्या न करें
इस पावन अवसर पर कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि त्योहार की पवित्रता और शुभता बनी रहे।
क्या करें (Do's):
1. पूजा के समय शांत मन और पवित्र विचारों से युक्त रहें।
2. परिवार के सभी सदस्य मिलकर दीप जलाएँ और पूजा करें।
3. घर के मुख्य द्वार पर, मंदिर में और रसोईघर में दीपक अवश्य जलाएँ।
4. किसी जरूरतमंद को भोजन, वस्त्र या आर्थिक सहायता का दान अवश्य दें।
5. मितव्ययिता से पटाखे जलाएँ और पर्यावरण का ध्यान रखें।
क्या न करें (Don'ts):
1. पूजा के समय या शाम के बाद झाड़ू न लगाएँ, ऐसा माना जाता है कि इससे लक्ष्मी जी चली जाती हैं।
2. काले या नीले रंग के वस्त्र पहनने से बचें, ये रंग शोक के प्रतीक माने जाते हैं। पीला, लाल या सफेद रंग शुभ रहता है।
3. इस दिन क्रोध, ईर्ष्या, वाद-विवाद या नकारात्मक बातचीत से दूर रहें।
4. पूजा के समय लापरवाही या जल्दबाजी न बरतें।
5. शराब या मांसाहार जैसी वस्तुओं का सेवन करने से बचें, यह त्योहार की पवित्रता को भंग करता है।
दीपावली उत्सव का विस्तार: अन्य पावन पर्व
दीपावली एकल त्योहार नहीं, बल्कि पाँच दिवसीय उत्सवमाला का प्रमुख दिवस है। इसके बाद भी उत्सव की धूम जारी रहती है।
1. गोवर्धन पूजा (22 अक्टूबर 2025, बुधवार): दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध से गोकुलवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। इस दिन लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर उसकी पूजा करते हैं और 'अन्नकूट' का प्रसाद बनाते हैं। यह पर्व प्रकृति और पशुधन के प्रति हमारी कृतज्ञता को व्यक्त करता है आगे जानें...
2. भैया दूज (23 अक्टूबर 2025, गुरुवार): उत्सव की इस श्रृंखला का अंतिम पर्व भैया दूज है, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम और रक्षा के बंधन को समर्पित है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनके दीर्घ जीवन और सुखमय भविष्य की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं और उसकी रक्षा का वचन दोहराते हैं। यह पर्व रिश्तों की मिठास और जिम्मेदारी की भावना को और मजबूत करता है आगे जानें...
Astroscience परिवार की ओर से आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
माँ लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान श्रीराम आपके घर में रौशनी, सुख, शांति और सफलता का आशीर्वाद दें।
निष्कर्ष: जीवन को आलोकित करने का संकल्प
दीपावली 2025 का यह पर्व केवल एक वार्षिक उत्सव नहीं, बल्कि आत्म-मंथन और आत्म-सुधार का एक सुनहरा अवसर है। यह हमें याद दिलाता है कि जिस प्रकार एक छोटा सा दीपक गहन से गहन अंधकार को मिटा सकता है, उसी प्रकार हमारे भीतर का छोटा सा सकारात्मक परिवर्तन हमारे समस्त जीवन को प्रकाशमय बना सकता है।
आइए, इस दीपावली पर हम यह संकल्प लें कि न केवल अपने घरों को दीपों से जगमगाएँगे, बल्कि अपने हृदयों से नफरत, ईर्ष्या और स्वार्थ के अंधकार को भी दूर करेंगे। अपने जीवन में ज्ञान, प्रेम और करुणा का दीपक जलाएंगे और दूसरों के जीवन में भी इसी प्रकाश को बाँटने का प्रयास करेंगे। क्योंकि सच्ची दीपावली तब ही है, जब हमारा आंतरिक प्रकाश बाहरी प्रकाश से भी अधिक चमकने लगे। शुभ दीपावली!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1. दिवाली 2025 में लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
20 अक्टूबर 2025 को शाम 4:30 बजे से 5:56 बजे तक का समय लक्ष्मी पूजा के लिए अत्यंत शुभ रहेगा।
Q2. दिवाली पर कौन-कौन से देवता की पूजा की जाती है?
दिवाली पर मुख्य रूप से माँ लक्ष्मी (धन-समृद्धि), भगवान गणेश (विघ्नहर्ता) और कुबेर देव (धन के कोषाध्यक्ष) की पूजा की जाती है।
Q3. दिवाली के बाद अन्य कौन-कौन से पर्व मनाए जाते हैं?
दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा (22 अक्टूबर 2025) और उसके बाद भैया दूज (23 अक्टूबर 2025) मनाई जाएगी।
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