हरतालिका तीज भारत में महिलाओं द्वारा बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला एक प्रमुख धार्मिक पर्व है। यह त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इस पर्व का संबंध देवी पार्वती और भगवान शिव की कथा से जुड़ा है, और इसे विशेष रूप से विवाहित और अविवाहित महिलाएं अपनी इच्छाओं की पूर्ति और पति की लंबी उम्र के लिए मनाती हैं।
हरतालिका तीज 2025 की तिथि
पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि 25 अगस्त 2025 को दोपहर 12:35 बजे आरंभ होगी और 26 अगस्त 2025 को दोपहर 1:55 बजे समाप्त होगी। इसलिए हरतालिका तीज इस साल 26 अगस्त, मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन आप सभी मंगलकामना की प्रार्थना करें और अगर आप किसी भी समस्या से जूझ रहे हैं तो Astroscience के प्रशिक्षित आचार्यो से अपनी कुंडली जरूर चेक करवाएं।
हरतालिका तीज का महत्व
हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ है – ‘हार’ और ‘तालिका’। यहाँ ‘हार’ का अर्थ है ‘बंधन’ और ‘तालिका’ का अर्थ है ‘व्रत’। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि महिलाएं इस दिन उपवास और कठोर तपस्या के माध्यम से अपनी इच्छाओं की पूर्ति और अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं।
यह पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस त्योहार के विषय में मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस दिन महिलाएं माता पार्वती की तरह संकल्प लेकर कठोर निर्जला व्रत करती हैं और माता पार्वती जी के सतीत्व, त्याग और तपश्चर्या की कथा को याद करती हैं। हरतालिका तीज का व्रत उन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है जो अपने वैवाहिक जीवन में खुशहाली और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
हरतालिका तीज का धार्मिक पौराणिक महत्व
कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने कठोर तपस्या और उपवास करके ही भगवान शिव का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें अपना पति बनाने में सफल हुईं। यह कथा महिलाओं के समर्पण, तपस्या और धैर्य का प्रतीक मानी जाती है।
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपनी इच्छा पूरी होने तक कठोर उपवास और व्रत किया। उन्होंने भोजन और पानी का परित्याग कर दिया और कठोर तप किया। उनकी भक्ति और संकल्प देखकर भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और विवाह का वरदान दिया। इसी कारण हरतालिका तीज पर महिलाएं माता पार्वती की भक्ति का अनुसरण करती हैं।
हरतालिका तीज का त्यौहार कब मनाया जाता है?
हरतालिका तीज आम तौर पर श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व अगस्त और सितंबर के महीने में आता है। नेपाल में इसे विशेष रूप से ‘हरितालिका तीज’ के नाम से मनाया जाता है और यहाँ यह एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
हरतालिका तीज की विशेषताएँ
1. व्रत और उपवास - यह पर्व उपवास के लिए प्रसिद्ध है। महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और पूरे दिन फलाहार या केवल जल ग्रहण करती हैं। यह व्रत उनकी भक्ति, धैर्य और संकल्प का प्रतीक माना जाता है।
2. देवी पार्वती की पूजा - इस दिन महिलाएं माता पार्वती की कठोर तपस्या की पूजा करती हैं। पूजा में पारंपरिक मंत्रों का उच्चारण और शास्त्रीय विधियों का पालन किया जाता है।
3. भजन और कीर्तन - इस दिन भजन, कीर्तन और भगवान शिव और माता पार्वती की कथाएँ सुनाई जाती हैं। महिलाएं मिलकर भक्ति गीत गाती हैं और पूजा स्थल को सजाती हैं।
4. हरी पोशाक और श्रृंगार - तीज के दिन महिलाएं हरी पोशाक पहनती हैं, क्योंकि हरा रंग समृद्धि, नई शुरुआत और जीवन में उन्नति का प्रतीक माना जाता है। साथ ही महिलाएं मेहँदी लगाती हैं और पारंपरिक आभूषण पहनती हैं।
5. सांस्कृतिक कार्यक्रम - हरतालिका तीज पर समाज में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। महिलाओं के लिए नृत्य, गीत और लोकगीतों की प्रस्तुति की जाती है।
हरतालिका तीज की पारंपरिक रस्में
हरतालिका तीज का पर्व केवल पूजा और व्रत तक ही सीमित नहीं है। इसके साथ जुड़ी कई रस्में और परंपराएँ हैं, जो इसे विशेष बनाती हैं।
1. मेहँदी लगाना: व्रत से पहले महिलाएं अपने हाथों और पैरों में मेहँदी लगाती हैं। मेहँदी को सौभाग्य और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
2. हरी पोशाक पहनना: महिलाएं विशेष रूप से हरे रंग की साड़ी पहनती हैं। हरे रंग को जीवन में ऊर्जा, खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
3. सजावट और झूला: कई जगहों पर महिलाएं अपने घरों और आंगनों को सजाती हैं। कुछ स्थानों पर झूला झूलना भी तीज का हिस्सा होता है, जो जीवन में संतुलन और आनंद का प्रतीक है।
4. भजन संध्या: रात में भजन, कीर्तन और कथा सुनाई जाती हैं। महिलाएं मिलकर माता पार्वती और भगवान शिव की स्तुति करती हैं।
हरतालिका तीज का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
हरतालिका तीज का धार्मिक महत्व तो है ही, इसके साथ साथ सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व महिलाओं के जीवन में सामाजिक मेल-जोल, भक्ति और सांस्कृतिक चेतना को बढ़ाता है।
1. महिलाओं का सशक्तिकरण: यह पर्व महिलाओं को अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए संकल्प लेने और अपने जीवन में अनुशासन लाने की प्रेरणा देता है।
2. सांस्कृतिक पहचान: हरतालिका तीज के माध्यम से पारंपरिक लोकगीत, भजन और नृत्य संरक्षित रहते हैं।
3. समुदाय में मेलजोल: महिलाएं मिलकर व्रत करती हैं, भजन गाती हैं और सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेती हैं। इससे समुदाय में एकता और आपसी सहयोग की भावना बढ़ती है।
हरतालिका तीज की विशेष तैयारियाँ
हरतालिका तीज के लिए महिलाएं कई दिन पहले से तैयारियाँ करना शुरू कर देती हैं। ये तैयारियाँ त्यौहार को और भी खास बनाती हैं।
1. व्रत सामग्री: व्रत के लिए विशेष फल, सूखे मेवे, उपवास के लिए विशेष व्यंजन जैसे फलाहारी पकोड़े, हलवा, और पानी शामिल किए जाते हैं।
2. पूजा सामग्री: पूजा के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियाँ, फूल, दीपक, अगरबत्ती और तिलक सामग्री तैयार की जाती हैं।
3. सजावट: घर, आंगन और पूजा स्थल को फूलों, रंगोली और झूले से सजाया जाता है।
4. सांस्कृतिक प्रोग्राम: महिलाएं भजन, गीत और नृत्य की तैयारी करती हैं।
हरतालिका तीज में किए जाने वाले व्रत का तरीका
हरतालिका तीज का व्रत भक्ति और अनुशासन का प्रतीक है। इसे करने की विधि इस प्रकार है:
1. व्रत से पहले स्नान और स्वच्छता का ध्यान रखना आवश्यक है।
2. व्रती महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत करती हैं। कुछ जगहों पर फलाहार या पानी के सेवन की अनुमति होती है।
3. पूजा में माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र का प्रयोग किया जाता है।
4. संकल्प लेकर उपवास रखा जाता है और भजन, कीर्तन और कथा का पाठ किया जाता है।
5. दिन के अंत में व्रत खोलने के लिए विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है।
हरतालिका तीज और नवविवाहित महिलाओं के लिए महत्व
हरतालिका तीज का पर्व नवविवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। वे इस दिन अपने पति की लंबी उम्र, वैवाहिक सुख और घर की समृद्धि की कामना करती हैं। इसे सामाजिक रूप से भी एक अवसर माना जाता है जहाँ महिलाएं अपने नए जीवन में खुशहाली और संतोष के लिए संकल्प लेती हैं।
निष्कर्ष
हरतालिका तीज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के भक्ति, संकल्प और धैर्य का प्रतीक है। यह पर्व उन्हें अपने जीवन में अनुशासन, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक चेतना का अनुभव कराता है। माता पार्वती की कठोर तपस्या और भगवान शिव की प्राप्ति की कथा महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
इस त्यौहार के माध्यम से महिलाएं न केवल अपने परिवार और वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाती हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। हरतालिका तीज हमारे जीवन में श्रद्धा, भक्ति, और आत्मसंयम का संदेश देती है।
हरतालिका तीज का पर्व हमें यह सिखाता है कि संकल्प और भक्ति से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है और जीवन में खुशहाली और समृद्धि लाई जा सकती है।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. हरतालिका तीज कब मनाया जाता है?
हरतालिका तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में आती है। नेपाल में इसे ‘तीज’ के नाम से भी जाना जाता है। पूरे दिन महिलाएं व्रत और भक्ति में लिप्त रहती हैं।
2. हरतालिका तीज पर व्रत कैसे किया जाता है?
इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं, यानी पूरे दिन बिना भोजन के उपवास रखती हैं। कुछ जगहों पर फलाहार या पानी की अनुमति होती है। व्रत के दौरान माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है, भजन-कीर्तन होता है और संकल्प लिया जाता है। रात में व्रत खोलने के लिए विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है।
3. हरतालिका तीज का महत्व क्या है?
हरतालिका तीज महिलाओं के भक्ति, धैर्य और संकल्प का प्रतीक है। यह पर्व विशेष रूप से पति की लंबी उम्र, वैवाहिक सुख और घर की समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है। इसके साथ ही यह सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से महिलाओं के जीवन में अनुशासन, एकता और परंपराओं को बनाए रखने का अवसर भी देता है।
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