ज्येष्ठ पूर्णिमा, जिसे वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू चंद्र कैलेंडर के सबसे शुभ दिनों में से एक है। ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। विवाहित महिलाएँ सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से प्रेरित होकर अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए इस दिन व्रत और अनुष्ठान करती हैं।
2025 में, ज्येष्ठ पूर्णिमा बुधवार, 11 जून को मनाई जाएगी। यह लेख ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि, महत्व, अनुष्ठान विधि, उपवास के लाभ और संबंधित परंपराओं के बारे में विस्तार से बताता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2025: तिथि और शुभ समय
1. पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 10 जून, 2025, रात 11:12 बजे
2. पूर्णिमा तिथि समाप्त: 11 जून, 2025, रात 09:41 बजे
3. पूजा का सर्वोत्तम समय: 11 जून को सूर्योदय (05:43 बजे) से 12 जून को सूर्योदय (05:43 बजे) तक
इस दिन अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ के लिए पवित्र स्नान, दान और पूजा करनी चाहिए।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा का हिंदू पौराणिक कथाओं और परंपराओं में विशेष महत्व है। आइए जानते हैं कि इस दिन को इतना पवित्र और खास क्यों माना जाता है:
1. धार्मिक महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा को धार्मिक रूप से अत्यंत श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण माना जाता है, यह पर्व भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है जो समस्त संसार को समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं। इस दिन वट (बरगद) के पेड़ की विशेष पूजा की जाती है, जिसे हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) का निवास स्थान कहा जाता है। विवाहित महिलाएं वट सावित्री व्रत का पालन करती हैं, जो सावित्री की अद्भुत भक्ति और दृढ़ संकल्प से प्रेरित है - जिन्होंने अपनी अटूट निष्ठा से यमराज (मृत्यु के देवता) को पराजित कर अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। यह व्रत पतिव्रता धर्म का प्रतीक है और स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु व कुटुंब की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस प्रकार ज्येष्ठ पूर्णिमा हिंदू संस्कृति में आस्था, भक्ति और पारिवारिक मूल्यों का अनूठा संगम है।
2. आध्यात्मिक लाभ
ज्येष्ठ पूर्णिमा को आध्यात्मिक दृष्टि से भी अद्वितीय माना जाता है। इस पावन दिन उपवास रखने से मन और आत्मा की शुद्धि होती है, साथ ही गहन मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की शक्तिशाली ऊर्जा ध्यान और आध्यात्मिक साधनाओं के लिए विशेष रूप से अनुकूल होती है, जिससे आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह समय आंतरिक चेतना को जागृत करने, मन को एकाग्र करने और दिव्य अनुभूतियाँ प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस प्रकार, ज्येष्ठ पूर्णिमा आध्यात्मिक साधकों के लिए स्वयं को ईश्वर से जोड़ने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करती है।
3. वैज्ञानिक और पारिस्थितिक महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा का वैज्ञानिक एवं पारिस्थितिक महत्व भी उल्लेखनीय है। ग्रीष्मकाल के चरम पर होने के कारण यह उपवास शरीर की प्राकृतिक डिटॉक्स प्रक्रिया को सक्रिय करता है, जिससे पाचन तंत्र सुदृढ़ होता है और शरीर में जमा विषैले तत्व बाहर निकलते हैं। वट वृक्ष (बरगद) की पूजा का पर्यावरणीय पक्ष विशेष रूप से प्रासंगिक है - यह विशाल वृक्ष वायुमंडल को शुद्ध करने में सक्षम है, जिसकी एक परिपक्व वृक्ष द्वारा प्रतिदिन 5-6 व्यक्तियों के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता होती है। इसकी जटिल जड़ प्रणाली मिट्टी के कटाव को रोकती है और भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायक होती है। इस प्रकार यह पर्व वैज्ञानिक दृष्टि से स्वास्थ्यवर्धक और पारिस्थितिकी संतुलन के संरक्षण में सहायक है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा पूजा विधि (अनुष्ठान)
सही अनुष्ठानों का पालन करने से दिव्य आशीर्वाद सुनिश्चित होता है। यहाँ एक चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका दी गई है:
1. सुबह की रस्में
गंगा जल अथवा किसी भी पवित्र नदी के जल में या घर पर ही स्नान करें। साफ, पारंपरिक कपड़े पहनें (अधिमानतः पीले या सफेद) ।
2. संकल्प (व्रत लेना)
पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की मूर्तियाँ/चित्र स्थापित करें। हाथों में जल, फूल और चावल लेकर व्रत रखने का संकल्प लें।
3. वट वृक्ष (बरगद का पेड़) पूजा
बरगद के पेड़ पर जाएँ (या घर पर इसके पत्ते रखें) । वृक्ष पर जल, दूध, फूल, कुमकुम और पवित्र धागा चढ़ाएँ। वृक्ष के तने के चारों ओर धागा बाँधें और सात बार परिक्रमा करें।
4. विष्णु-लक्ष्मी पूजा
भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, पीले फूल, फल और मिठाई चढ़ाएँ। “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” का 108 बार जाप करें। घी का दीपक जलाएँ और आरती करें।
5. दान-पुण्य
ज़रूरतमंदों को भोजन, कपड़े और पैसे दान करें। इस दिन जल दान बहुत पुण्यदायी होता है।
6. व्रत कथा सुनें
सावित्री-सत्यवान की कथा (नीचे बताई गई है) का पाठ करें या सुनें।
7. चंद्र अर्पण (चंद्र दर्शन और अर्घ्य)
सूर्यास्त के बाद, चंद्रमा को जल (अर्घ्य) दें। फल, दूध या सात्विक भोजन से व्रत खोलें।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा (सावित्री और सत्यवान की कथा)
इस दिन से जुड़ी सबसे लोकप्रिय कथा राजकुमारी सावित्री की है, जिन्होंने अपनी अटूट भक्ति के माध्यम से अपने पति सत्यवान को मृत्यु से वापस ला दिया था।
संक्षेप में कहानी:
राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने एक गरीब लेकिन कुलीन व्यक्ति सत्यवान से विवाह किया। एक ऋषि ने भविष्यवाणी की कि सत्यवान एक वर्ष के भीतर मर जाएगा। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन, सत्यवान एक बरगद के पेड़ के नीचे मर गया। यम (मृत्यु के देवता) उसकी आत्मा को लेने आए। सावित्री ने यम का अनुसरण किया और अपनी बुद्धि और भक्ति से उन्हें प्रभावित किया। तब यम ने उन्हें तीन वरदान मांगने के लिए कहा। जिसमें उन्होंने अपने ससुर का खोया हुआ राज्य और नेत्रज्योति तथा अपने लिए पुत्रवती होने का वर मांगा। अंत में यम को वरदान के कारण विवश होकर सत्यवान को जीवित करना पड़ा और इस तरह से सावित्री की सभी इच्छाएँ पूरी हुई।
यह कहानी विवाहित महिलाओं को अपने पतियों की भलाई के लिए वट सावित्री व्रत रखने के लिए प्रेरित करती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत रखने के लाभ
1. वैवाहिक सुख - पति-पत्नी के बीच बंधन को मजबूत करता है।
2. स्वास्थ्य और दीर्घायु - परिवार के सदस्यों को असामयिक मृत्यु से बचाता है।
3. धन और समृद्धि - देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
4. आध्यात्मिक विकास - कर्म को शुद्ध करता है और भक्ति को बढ़ाता है।
5. पर्यावरण जागरूकता - वृक्ष पूजा और प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष
ज्येष्ठ पूर्णिमा समृद्धि, वैवाहिक सुख और समृद्धि के लिए ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त करने का एक शक्तिशाली अवसर है। धन और आध्यात्मिक विकास के लिए व्रत रखने, बरगद के पेड़ की पूजा करने और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनने से भक्त भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
11 जून, 2025 के लिए अपने कैलेंडर पर निशान लगाएँ और इस पवित्र दिन को भक्ति और आनंद के साथ मनाएँ!
"ओम नमो भगवते वासुदेवाय"
ज्येष्ठ पूर्णिमा के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. क्या अविवाहित लड़कियाँ ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत रख सकती हैं?
हां, अविवाहित महिलाएं एक अच्छे जीवनसाथी और परिवार की खुशहाली के लिए यह व्रत रख सकती हैं।
2. व्रत के दौरान क्या खाना चाहिए?
भक्त फल, दूध, मेवे और सात्विक भोजन (अनाज या मांसाहारी नहीं) खा सकते हैं।
3. क्या वट पूर्णिमा और वट सावित्री व्रत एक ही हैं?
हां, वट पूर्णिमा (उत्तर भारत) और वट सावित्री व्रत (पश्चिम/दक्षिण भारत) एक ही त्योहार हैं, लेकिन अनुष्ठानों में क्षेत्रीय भिन्नताएं हैं।