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शारदीय नवरात्रि 2025 - माँ कात्यायनी की पूजा तिथि और मुहूर्त

28 सितम्बर 2025 को शारदीय नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा होगी। आइए जानते हैं माँ कात्यायनी की पूजा विधि, महत्व, शुभ मुहूर्त, कथा, और इससे प्राप्त होने वाले शुभ फलों के बारे में।

 

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नवरात्रि और माँ कात्यायनी का महत्व

 

हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व विशेष स्थान रखता है। यह केवल एक धार्मिक उत्सव ही नहीं बल्कि शक्ति, भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संगम है। नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना को समर्पित होते हैं। प्रत्येक दिन का संबंध देवी के एक अलग स्वरूप से होता है।

 

छठे दिन की पूजा माँ कात्यायनी को समर्पित होती है। इन्हें माँ दुर्गा का छठा स्वरूप माना जाता है। माँ कात्यायनी को महिषासुर मर्दिनी के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने महिषासुर जैसे दुर्धर्ष राक्षस का वध कर देवताओं और मनुष्यों को भयमुक्त किया।

 

माँ कात्यायनी के तेज, शक्ति और साहस का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। माना जाता है कि श्रद्धा और विश्वास से इनकी पूजा करने पर व्यक्ति को न केवल सांसारिक सुख प्राप्त होता है बल्कि जीवन की सभी बाधाएँ और भय भी दूर हो जाते हैं।

 

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कात्यायनी पूजा 2025 की तिथि और मुहूर्त

 

शारदीय नवरात्रि का छठा दिन 2025 में 28 सितम्बर (रविवार) को पड़ रहा है। यही दिन माँ कात्यायनी की पूजा का दिन होगा।

 

1. षष्ठी तिथि प्रारंभ: 27 सितम्बर 2025, रात 9:25 बजे

 

2. षष्ठी तिथि समाप्त: 28 सितम्बर 2025, रात 11:12 बजे

 

3. पूजा का शुभ मुहूर्त: प्रातःकाल का समय सर्वश्रेष्ठ माना गया है। विशेषकर ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:36 से 5:24 बजे तक) में पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है।

 

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माँ कात्यायनी का स्वरूप और विशेषताएँ

 

1. माँ कात्यायनी को निर्भीकता और पराक्रम का प्रतीक माना गया है

 

2. माँ कात्यायनी सिंह की सवारी करती हैं

 

3. उनके चार हाथ होते हैं - एक में तलवार, दूसरे में कमल पुष्प, तीसरा हाथ वरमुद्रा में और चौथा अभयमुद्रा में।

 

4. उनका चेहरा तेजस्वी है और उनकी उपस्थिति से ही असुर शक्तियाँ कांपने लगती हैं।

 

5. यह स्वरूप बताता है कि शक्ति और साहस ही धर्म की रक्षा कर सकते हैं।

 

माँ कात्यायनी की कथा

 

पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नामक राक्षस ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी देवता अथवा दानव उसे पराजित न कर सके। वरदान के बल पर वह तीनों लोकों में उत्पात मचाने लगा। देवताओं ने हार मानकर त्रिमूर्ति – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – से सहायता माँगी।

 

तीनों देवताओं और अन्य देवी-देवताओं के तेज से एक दिव्य नारी उत्पन्न हुईं। वही थीं माँ कात्यायनी। ऋषि कात्यायन ने इन्हें अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए घोर तप किया, इसलिए इन्हें कात्यायनी कहा गया।

 

माँ कात्यायनी ने महिषासुर का युद्ध में अंत किया और देवताओं को उनका स्थान वापस दिलाया। तभी से इन्हें महिषासुर मर्दिनी और धर्म-संरक्षिका के रूप में पूजा जाता है।

 

माँ कात्यायनी की पूजा विधि

 

1. प्रारंभिक तैयारी

 

1. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

 

2. पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।

 

3. माँ कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।

 

2. संकल्प और आवाहन

 

1. हाथ में जल और अक्षत लेकर संकल्प करें।

 

2. दीपक जलाएँ और धूप-अगरबत्ती अर्पित करें।

 

3. गंगाजल से माँ का स्नान कराएँ और वस्त्र अर्पित करें।

 

3. पूजन सामग्री अर्पण

 

1. चंदन, अक्षत और पीले फूल चढ़ाएँ।

 

2. माँ को शहद और दही का भोग लगाएँ।

 

3. पीले रंग के फल अर्पित करें।

 

4. मंत्र जाप

 

1. “ॐ कात्यायनी नमः” का 108 बार जाप करें।

 

विशेषकर विवाह की कामना रखने वाली कन्याओं को यह मंत्र नियमित रूप से जाप करना चाहिए -

 

ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।

नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः॥

 

5. आरती और प्रार्थना

 

पूजा के अंत में माँ की आरती करें और परिवार व समाज की भलाई के लिए प्रार्थना करें।

 

माँ कात्यायनी की पूजा का महत्व और लाभ

 

1. विवाह में सफलता - माँ कात्यायनी की पूजा करने से विवाह में आ रही रुकावटें दूर होती हैं और योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

 

2. साहस और आत्मविश्वास - पूजा से भय दूर होता है और आत्मबल की प्राप्ति होती है।

 

3. शत्रु नाश - शत्रु या बाधक शक्तियाँ पराजित होती हैं।

 

4. सुख-समृद्धि - घर में धन, शांति और समृद्धि आती है।

 

5. आध्यात्मिक प्रगति - साधक के भीतर एकाग्रता और ध्यान की शक्ति बढ़ती है।

 

माँ कात्यायनी की पूजा का विवाह के लिए विशेष महत्व

 

माँ कात्यायनी का प्राचीन मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले मे स्थित हैं, जहां अविवाहित कन्याएँ मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करती हैं। माँ कात्यायनी की पूजा के संबंध में ब्रज की गोपियों की अत्यंत प्रसिद्ध कथा है, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की थी। उसी परंपरा के अनुसार आज भी अविवाहित कन्याएँ छठे दिन विशेष रूप से पूजा करती हैं।

 

कन्याएँ पीले वस्त्र पहनकर माँ को पीले फूल अर्पित करती हैं और शहद का भोग लगाती हैं। यह विश्वास है कि इससे विवाह में आने वाली सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

 

माँ कात्यायनी का व्रत और उपवास

 

1. माँ कात्यायनी व्रत का भी विशेष महत्व है।

 

2. इस दिन फलाहार या केवल दूध का सेवन कर उपवास करना चाहिए।

 

3. दिनभर माँ का स्मरण करना चाहिए।

 

4. रात्रि में भजन-कीर्तन करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

 

निष्कर्ष

 

माँ कात्यायनी केवल शक्ति की देवी ही नहीं बल्कि प्रेम, साहस और धर्म की भी संरक्षिका हैं। उनकी पूजा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 2025 में छठे दिन यानी 28 सितम्बर (रविवार) को माँ की पूजा अवश्य करनी चाहिए। यह पूजा न केवल व्यक्तिगत जीवन की बाधाओं को दूर करती है बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

 

प्रश्न 1: माँ कात्यायनी की पूजा कौन कर सकता है?

 

उत्तर: माँ कात्यायनी की पूजा कोई भी भक्त कर सकता है। विशेषकर अविवाहित कन्याओं और वे लोग जिनके विवाह में बाधा है, उनके लिए यह पूजा बहुत फलदायी है।

 

प्रश्न 2: माँ कात्यायनी का प्रिय भोग क्या है?

 

उत्तर: माँ को शहद, दही और पीले फल प्रिय हैं। पीले फूल और चंदन भी अर्पित करना चाहिए।

 

प्रश्न 3: क्या कात्यायनी पूजा केवल नवरात्रि में करनी चाहिए?

 

उत्तर: नवरात्रि का छठा दिन सर्वोत्तम है, लेकिन श्रद्धा भाव से वर्षभर कभी भी माँ की पूजा की जा सकती है।

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