nirjala ekadashi

निर्जला एकादशी व्रत कैसे रखें? ज्योतिष और आध्यात्म के नजरिए से समझें

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक पक्ष में एक एकादशी आती है, लेकिन उन सभी में सबसे कठिन और पुण्यदायक मानी जाती है निर्जला एकादशी। इस एकादशी में नाम के अनुसार "निर्जल" यानी बिना पानी के उपवास किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है जो वर्षभर की अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते, क्योंकि यह व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों के व्रत के बराबर फल प्राप्त होता है। 

 

निर्जला एकादशी 2025 की तिथि व समय

 

1. व्रत तिथि: शुक्रवार, 6 जून 2025 

 

2. एकादशी तिथि प्रारंभ: 6 जून 2025 को प्रातः 2:15 बजे 

 

3. एकादशी तिथि समाप्त: 7 जून 2025 को प्रातः 4:47 बजे 

 

4. पारण (व्रत खोलने का समय): 7 जून 2025 को दोपहर 1:44 बजे से शाम 4:31 बजे तक 

 

निर्जला एकादशी का महत्व

 

निर्जला एकादशी को 'भीमसेनी एकादशी' भी कहा जाता है। यह एकादशी सभी एकादशियों में सबसे कठिन और सर्वोच्च मानी गई है, क्योंकि इसमें जल तक का त्याग किया जाता है। यह व्रत शरीर और मन दोनों की परीक्षा है, परंतु इसका फल अनेक यज्ञों और व्रतों के फल से कई गुना अधिक माना गया है। 

 

1. इस दिन व्रत रखने से समस्त पापों का नाश होता है। 

 

2. यह व्रत मोक्ष प्रदान करता है और जन्म-जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति दिलाता है

   

3. निर्जला व्रत करने वाले को बैकुंठ अर्थात विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। 

 

निर्जला एकादशी व्रत की कथा

 

महाभारत के अनुसार, पांडवों में भीमसेन को भूख बहुत लगती थी, इसलिए वह एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। उन्हें यह चिंता सताने लगी कि वह व्रत न करने के कारण मोक्ष से वंचित रह जाएंगे। तब उन्होंने महर्षि वेदव्यास से उपाय पूछा। 

 

वेदव्यास ने उन्हें बताया कि यदि वह ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को बिना जल ग्रहण किए उपवास कर लें, तो उन्हें वर्षभर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाएगा। वेदव्यास के कथानुसार, भीमसेन ने पूर्ण निष्ठा और भक्ति के साथ इस व्रत को पूर्ण किया और इस प्रकार उन्हें भी पुण्य व मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसी कारण यह व्रत 'भीमसेनी एकादशी' के नाम से भी प्रसिद्ध है। 

 

निर्जला एकादशी की व्रत विधि

 

निर्जला एकादशी के दिन यदि संभव हो तो जल ग्रहण नहीं करना चाहिए किंतु शारीरिक असमर्थता की स्थिति में जलाहार या अल्पाहार किया जा सकता है। इस दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए। 

 

1. प्रातः स्नान एवं संकल्प

 

● व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। 

 

● स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। 

 

2. पूजा विधि

 

● पूजा स्थान को स्वच्छ करके वहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। 

 

● पीले पुष्प, तुलसी दल, धूप, दीपक, चंदन आदि से भगवान विष्णु का पूजन करें।

 

● "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। 

 

● श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें या श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करें। 

 

3. उपवास

 

● इस दिन जल तक का सेवन नहीं किया जाता। यद्यपि केवल स्वस्थ और सक्षम व्यक्ति ही पूर्ण निर्जला व्रत करें। 

 

● जो लोग निर्जला व्रत नहीं कर सकते, वे फलाहार या जलाहार कर सकते हैं। 

 

● रात्रि में भजन-कीर्तन, भगवान विष्णु की स्तुति, और जागरण करना उत्तम माना जाता है। 

 

4. पारण विधि (व्रत तोड़ना)

 

● व्रत का पारण द्वादशी तिथि में नियत समय पर करना आवश्यक होता है। 

 

● ब्राह्मणों को भोजन कराकर, उन्हें वस्त्र, जल पात्र, पंखा, छाता आदि दान दें। 

 

● इसके बाद स्वयं फलाहार करें या हल्का भोजन ग्रहण करें। 

 

दान-पुण्य का महत्व

 

निर्जला एकादशी के दिन दान करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। इस दिन निम्न वस्तुओं का दान विशेष रूप से फलदायी होता है: 

 

1. जल से भरे घड़े 

 

2. छाता 

 

3. जूते-चप्पल 

 

4. पंखा 

 

5. तिल, चावल, वस्त्र 

 

6. स्वर्ण या रत्न (सामर्थ्य अनुसार) 

 

दान करते समय यह भावना होनी चाहिए कि यह भगवान विष्णु को अर्पित है। इस दिन जरूरतमंदों को जल पिलाना, गौ सेवा करना, और ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यंत शुभफलदायी होता है। 

 

निर्जला एकादशी से जुड़े विशेष तथ्य

 

1. यह एकादशी गर्मी के मौसम में आती है, जब जल का विशेष महत्व होता है, इसलिए इसका त्याग करना तपस्या के समान है। 

 

2. यह व्रत मानसिक, आत्मिक और शारीरिक शुद्धि प्रदान करता है। 

 

3. संपूर्ण भारत में यह एकादशी विशेष श्रद्धा से मनाई जाती है, विशेष रूप से उत्तर भारत, गुजरात और ओडिशा में। 

 

4. इस दिन हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज जैसे तीर्थ स्थलों पर विशेष मेले और स्नान कार्यक्रम होते हैं। 

 

विशेष मंत्र और पाठ

 

व्रत के दिन निम्न मंत्रों का जप अत्यंत फलदायी होता है: 

 

1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

 

2. ॐ विष्णवे नमः 

 

3. ॐ श्रीं श्रीये नमः 

 

श्री विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु स्तुति का पाठ करना अत्यंत लाभकारी होता है।

 

निष्कर्ष

 

निर्जला एकादशी व्रत एक ऐसा पर्व है जो मनुष्य को तप, त्याग और संयम के मार्ग पर चलना सिखाता है। यह व्रत केवल उपवास नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, सेवा और भक्ति का अवसर है। जो व्यक्ति इसे पूर्ण श्रद्धा और नियम से करता है, उसे निश्चित ही भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। 

 

इस 6 जून 2025 को निर्जला एकादशी का व्रत जरूर करें और इस अद्भुत अवसर पर पुण्य कमाएं। आप सभी को एस्ट्रोसाइंस परिवार की ओर से निर्जला एकादशी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

 

प्रश्न 1: क्या निर्जला एकादशी व्रत सभी के लिए अनिवार्य है?

 

उत्तर: नहीं, यह व्रत उन भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी है जो वर्षभर की एकादशियों का पालन नहीं कर सकते। यदि कोई स्वास्थ्य कारणों से निर्जल व्रत नहीं कर सकता, तो फलाहार या केवल जल पीकर भी व्रत किया जा सकता है। मुख्य बात श्रद्धा और भक्ति की होती है। 

 

प्रश्न 2: यदि किसी कारण से एकादशी तिथि में व्रत नहीं हो पाए तो क्या उपाय है?

 

उत्तर: यदि किसी विशेष कारणवश आप व्रत नहीं कर पाए, तो अगले वर्ष पुनः संकल्प लेकर करें। यदि व्रत करना संभव न हो तो भगवान विष्णु को तुलसीदल और जल अर्पित करें। साथ ही विष्णु स्तुति, “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप और अन्नदान करें ताकि अक्षय पुण्य की प्राप्ति हो सके। 

 

प्रश्न 3: क्या महिलाएं भी यह व्रत रख सकती हैं?

 

उत्तर: हां, महिलाएं भी निर्जला एकादशी का व्रत रख सकती हैं। परंतु यदि कोई गर्भवती, रोगी या बुजुर्ग महिला हो, तो वह फलाहार या जलाहार का विकल्प चुन सकती हैं। धार्मिक नियमों से अधिक शरीर की स्थिति को महत्व देना चाहिए।

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