हिन्दू धर्म में परशुराम जी को भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है। वे एक महान योद्धा, तपस्वी और गुरु थे, जिन्होंने धर्म की स्थापना के लिए अनेकों संघर्ष किए। परशुराम जयंती हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व 29 अप्रैल 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा।
परशुराम जयंती कब मनाई जाती है?
तृतीया तिथि का समय:
तृतीया तिथि प्रारम्भ: 29 अप्रैल 2025 को 05:31 PM बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 30 अप्रैल 2025 को 02:12 PM बजे
इस दिन भक्त भगवान परशुराम की पूजा-अर्चना करते हैं, उनके मंदिरों में विशेष अनुष्ठान होते हैं और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस लेख में हम भगवान परशुराम के जीवन, उनकी गाथा, महत्व और प्रमुख मंदिरों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
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भगवान परशुराम का जीवन परिचय
भगवान परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में हुआ था। उनका वास्तविक नाम "राम" था, लेकिन भगवान शिव से परशु (फरसा) प्राप्त होने के कारण वे "परशुराम" कहलाए। उन्हें भगवान शिव का परम भक्त माना जाता है और उन्होंने कठोर तपस्या करके महादेव से अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए।
परशुराम और हैहयवंशी क्षत्रियों का संघर्ष
परशुराम की सबसे प्रसिद्ध गाथा हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन (कार्तवीर्य अर्जुन) और उनके वंश के विनाश से जुड़ी है। कथा के अनुसार, सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी थी। इसके बाद परशुराम ने प्रतिशोध लेने के लिए 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया।
भगवान परशुराम और रामायण-महाभारत काल
रामायण में: परशुराम ने भगवान राम से सीता स्वयंवर के समय मिलकर उनकी शक्ति की परीक्षा ली थी।
महाभारत में: वे भीष्म, द्रोण और कर्ण को शस्त्र विद्या सिखाने वाले गुरु थे।
भगवान परशुराम का अमरत्व
ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं और वे कलियुग के अंत तक तपस्या करते रहेंगे। मान्यताओं के अनुसार, उनका निवास महेंद्रगिरि पर्वत पर है।
परशुराम जयंती का महत्व
परशुराम जयंती का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। इस दिन भक्त उपवास रखकर भगवान परशुराम की आराधना और दान-पुण्य करते हैं। कुछ मुख्य महत्व इस प्रकार हैं:
1. धर्म और न्याय की स्थापना: परशुराम ने अधर्मी क्षत्रियों का विनाश करके धर्म की रक्षा की।
2. गुरु और शिक्षक का सम्मान: वे एक महान गुरु थे, जिन्होंने महाभारत के महान योद्धाओं को शिक्षा दी।
3. तपस्या और अनुशासन का प्रतीक: उनका जीवन कठोर तप और अनुशासन का उदाहरण है।
परशुराम जयंती के दिन क्या करें?
1. प्रातः स्नान और पूजा: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान परशुराम की पूजा करें।
2. व्रत रखें: इस दिन व्रत रखकर फलाहार करना शुभ माना जाता है।
3. गीता और रामायण का पाठ: धार्मिक ग्रंथों का पाठ करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है।
4. दान-पुण्य: गरीबों और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।
5. मंदिर दर्शन: यदि संभव हो, तो भगवान परशुराम के प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन करें।
चिरंजीवी परशुराम: आज कहाँ हैं?
हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं, अर्थात वे आज भी जीवित हैं। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि वे कलियुग के अंत तक तपस्या में लीन रहेंगे। उनके वर्तमान निवास स्थान के बारे में कई मान्यताएँ प्रचलित हैं:
1. महेंद्रगिरि पर्वत (ओडिशा):
मान्यता है कि परशुराम इसी पर्वत पर निवास करते हैं। यहाँ परशुरामेश्वर मंदिर स्थित है, जहाँ उनकी पूजा होती है।
2. परशुराम कुंड (अरुणाचल प्रदेश):
लोक कथाओं के अनुसार, परशुराम ने यहाँ अपने परशु (फरसे) से एक कुंड बनाया था। माना जाता है कि वे समय-समय पर यहाँ दर्शन देते हैं।
3. हिमालय की गुफाएँ (उत्तराखण्ड):
कुछ मान्यताओं के अनुसार, परशुराम हिमालय के किसी गुप्त स्थान पर तपस्या कर रहे हैं।
4. कोंकण क्षेत्र (महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक):
परशुराम को कोंकण का निर्माता माना जाता है, इसलिए मान्यता है कि वे इस क्षेत्र में अदृश्य रूप से विचरण करते हैं।
कहाँ धूमधाम से मनाई जाती है परशुराम जयंती?
परशुराम जयंती भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है, खासकर वहाँ जहाँ उनसे जुड़े प्रमुख मंदिर या तीर्थ स्थल हैं। कुछ प्रमुख स्थान निम्नलिखित हैं:
1. राजस्थान - परशुराम महादेव मंदिर, राजसमंद और पाली
2. हिमाचल प्रदेश - परशुराम मंदिर, निरमंड
3. महाराष्ट्र - परशुराम मंदिर, चिपलून (रत्नागिरी)
4. केरल - श्री परशुराम स्वामी मंदिर, थिरुवल्लम
5. उत्तराखंड - परशुराम मंदिर, उत्तरकाशी
6. झारखंड - बाबा टांगीनाथ धाम (परशुराम तपस्थली)
7. गुजरात - परशुराम की तपोभूमि (पोरबंदर)
निष्कर्ष
भगवान परशुराम न केवल एक महान योद्धा और तपस्वी थे, बल्कि वे आज भी चिरंजीवी के रूप में धर्म की रक्षा कर रहे हैं। उनकी जयंती पूरे भारत में विशेष रूप से राजस्थान, हिमाचल, महाराष्ट्र, केरल और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।
29 अप्रैल 2025, मंगलवार को परशुराम जयंती के इस पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ!
परशुराम जयंती से जुड़े सवाल जवाब (FAQs)
1. परशुराम जयंती कब मनाई जाती है?
परशुराम जयंती हर साल वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, जिसे अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है, के दिन मनाई जाती है।
2. परशुराम कौन हैं?
योग, वेद और नीति में पारंगत भगवान परशुराम, ऋषि जामदग्नि और रेणुका के पुत्र हैं। इन्हें अमर माना जाता है। धर्म की रक्षा के लिए इन्होंने दुष्ट और भ्रष्ट क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था।
3. परशुराम जयंती का महत्व क्या है?
यह दिन अच्छाई की बुराई पर विजय और धर्म के महत्व को दर्शाता है। भगवान परशुराम अनुशासन और भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं, और उनके उपदेश लोगों को ईमानदारी से जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
4. भगवान परशुराम के मुख्य उपदेश क्या हैं?
भगवान परशुराम के जीवन से हमें कर्तव्य, भक्ति और अत्याचार के खिलाफ खड़े होने की शिक्षा मिलती है। वे ज्ञान की रक्षा और ब्राह्मण परंपरा की सुरक्षा से भी जुड़े हैं।
5. परशुराम जयंती कहाँ अधिक धूमधाम से मनाई जाती है?
यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। भगवान परशुराम के मंदिर, जैसे महाराष्ट्र का परशुराम मंदिर, में बड़े उत्सव होते हैं।
6. क्या परशुराम जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश है?
कुछ भारतीय राज्यों जैसे हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, और महाराष्ट्र में परशुराम जयंती सार्वजनिक अवकाश होती है, लेकिन यह राष्ट्रीय अवकाश नहीं है।
7. परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है?
परशुराम जयंती भगवान परशुराम के जन्म और उनके न्याय के योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाई जाती है। श्रद्धालु इस दिन भगवान से साहस, शक्ति और बुरी शक्तियों से सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं।