भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराएँ अत्यंत गहन और आध्यात्मिक महत्व रखती हैं। इनमें से एक है श्राद्ध पक्ष अथवा पितृपक्ष। यह समय पूर्वजों को स्मरण करने, उनके लिए तर्पण, पिंडदान और दान करने का होता है। इसी श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन होता है पूर्णिमा श्राद्ध, जिसे विशेष महत्व प्राप्त है। यह दिन उन सभी पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए समर्पित माना जाता है जिनकी पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, अथवा जो किसी भी कारणवश विस्मृत हो गए हैं। इस साल पूर्णिमा श्राद्ध की शुरुआत 7 सितम्बर 2025 से शुरू होकर 21 सितम्बर 2025 तक है।
पूर्णिमा श्राद्ध केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि यह अपने वंश, परंपरा और संस्कृति से जुड़ाव का प्रतीक भी है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि पूर्णिमा श्राद्ध का महत्व क्या है, इसकी क्रिया-विधि क्या है और इससे संबंधित पौराणिक मान्यताएँ क्या कहती हैं।
श्राद्ध का महत्व
"श्राद्ध" शब्द संस्कृत धातु "श्रद्धा" से बना है, जिसका अर्थ है - आस्था, भक्ति और श्रद्धा के साथ किया गया कर्म। पितरों के प्रति श्रद्धा से किया गया अनुष्ठान ही श्राद्ध कहलाता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा "पितृलोक" की यात्रा करती है। श्राद्ध कर्म के द्वारा उनके लिए जल, अन्न और दान अर्पित किया जाता है जिससे उनकी आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है।
पूर्णिमा श्राद्ध का विशेष महत्व
पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा अपनी पूर्ण अवस्था में होता है, जो शांति, पूर्णता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। जब श्राद्ध पक्ष की पूर्णिमा आती है, तब इसका आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
1. अज्ञात तिथियों के लिए विशेष दिन - जिन पितरों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, उनके लिए पूर्णिमा श्राद्ध करना अनिवार्य माना गया है।
2. सभी पूर्वजों की तृप्ति - यह दिन केवल एक या दो पीढ़ियों के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण कुल के दिवंगत पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित है।
3. मोक्ष की प्राप्ति - शास्त्रों के अनुसार, इस दिन किया गया श्राद्ध पितरों को मोक्ष की ओर ले जाता है और उनके आशीर्वाद से परिवार पर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
4. अपूर्व पुण्यफल - पूर्णिमा पर श्राद्ध करने से व्यक्ति को उतना पुण्य प्राप्त होता है जितना पूरे पितृपक्ष में नियमित रूप से श्राद्ध करने से मिलता है।
पौराणिक संदर्भ
1. महाभारत - महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध की महिमा समझाते हुए कहा था कि पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक अर्पित किया गया अन्न और जल उन्हें दिव्य संतुष्टि प्रदान करता है।
2. गरुड़ पुराण - इसमें कहा गया है कि "श्रद्धया यत् क्रियते तद्वै श्राद्धम्" यानी श्रद्धा के साथ किया गया अनुष्ठान ही श्राद्ध है। पूर्णिमा श्राद्ध को विशेष रूप से अनिवार्य बताया गया है।
3. विष्णु पुराण - इसमें उल्लेख मिलता है कि जो व्यक्ति पूर्णिमा श्राद्ध करता है, उसके कुल में कभी दरिद्रता, अकाल मृत्यु और वंशविच्छेद नहीं होता।
पूर्णिमा श्राद्ध करने की विधि
श्राद्ध कर्म शुद्ध आचरण और नियमों के साथ किया जाना चाहिए। आइए जानते हैं इसकी प्रमुख विधियाँ -
1. तैयारी
1. प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
2. पूजा स्थल पर कुशा, जल, तिल, चावल, पत्तल और पवित्र अन्न रखें।
3. ब्राह्मणों या पंडित को आमंत्रित करना शुभ माना जाता है।
2. संकल्प
1. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके संकल्प लें कि यह श्राद्ध अपने पितरों की शांति के लिए कर रहे हैं।
2. संकल्प में अपना नाम, गोत्र और पितरों के नाम (यदि ज्ञात हों) उच्चारित करें।
3. पिंडदान
1. चावल, तिल और घी से बने पिंड तैयार करें।
2. पिंड को कुशा पर रखकर मंत्रोच्चारण के साथ पितरों को अर्पित करें।
4. तर्पण
1. जल में तिल और कुशा डालकर "ॐ पितृभ्यः स्वधा" मंत्र बोलते हुए तर्पण करें।
2. तर्पण से पितरों की तृप्ति होती है।
5. ब्राह्मण भोजन और दान
1. ब्राह्मणों को भोजन कराना और वस्त्र या अन्न का दान करना आवश्यक है।
2. यह माना जाता है कि ब्राह्मणों को दिया गया अन्न और दान पितरों तक पहुँचता है।
6. गौ और कुत्तों को भोजन
परंपरा के अनुसार गाय, कौवे और कुत्तों को भोजन खिलाना चाहिए। इन्हें पितरों का प्रतीक माना गया है।
पूर्णिमा श्राद्ध में क्या करें और क्या न करें
1. क्या करें:
1. सच्ची श्रद्धा और मन की शुद्धि से श्राद्ध करें।
2. परिवार के सभी सदस्य इस दिन संयम और सात्विक आहार का पालन करें।
3. पितरों की स्मृति में गरीबों को दान दें।
2. क्या न करें:
1. मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन न करें।
2. क्रोध, अपशब्द और अशुद्ध आचरण से बचें।
3. इस दिन किसी का अपमान न करें, क्योंकि यह पितरों का दिन है।
पूर्णिमा श्राद्ध से जुड़े लाभ
1. पितरों की आत्मा को शांति और संतोष मिलता है।
2. परिवार में शांति और समृद्धि बनी रहती है।
3. पितरों के आशीर्वाद से संतान की उन्नति होती है।
4. अकाल मृत्यु, पितृदोष और कुल में संकट जैसी नकारात्मकताओं से मुक्ति मिलती है।
5. यह दिन परिवार के सभी सदस्यों को अपने पूर्वजों की याद दिलाकर परंपरा से जोड़ता है।
सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व
1. पूर्णिमा श्राद्ध केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह परिवार और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक भी है।
2. यह हमें अपने वंश की जड़ों से जोड़ता है।
3. इससे कृतज्ञता की भावना प्रकट होती है कि हम अपने पूर्वजों के कारण ही आज अस्तित्व में हैं।
4. यह अगली पीढ़ी को भी सिखाता है कि जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों का नाम नहीं, बल्कि संस्कार और परंपराएँ निभाना भी उतना ही आवश्यक है।
निष्कर्ष
पूर्णिमा श्राद्ध पितृपक्ष का समापन और पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने का सबसे श्रेष्ठ दिन है। इस दिन किया गया तर्पण और दान पितरों की आत्मा को शांति देकर उन्हें मोक्ष की ओर ले जाता है। वहीं, परिवार को उनके आशीर्वाद से सुख-समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
पूर्णिमा श्राद्ध हमें यह भी याद दिलाता है कि हम चाहे कितने ही आधुनिक क्यों न हो जाएँ, लेकिन अपने पूर्वजों और संस्कृति से जुड़ाव बनाए रखना हमारी असली धरोहर है।
FAQs
1. पूर्णिमा श्राद्ध कब किया जाता है?
पूर्णिमा श्राद्ध पितृपक्ष की अंतिम तिथि यानी अश्विन मास की पूर्णिमा को किया जाता है। यदि किसी को अपने पितरों की पुण्यतिथि ज्ञात न हो तो वह इसी दिन श्राद्ध कर सकता है।
2. क्या पूर्णिमा श्राद्ध बिना पंडित के किया जा सकता है?
हाँ, यदि मंत्र या विधि ज्ञात न हो तो भी साधारण तर्पण और पितरों के नाम से संकल्प लेकर जल, तिल और अन्न अर्पित किया जा सकता है। मुख्य बात है श्रद्धा और भक्ति।
3. पूर्णिमा श्राद्ध करने से क्या लाभ होते हैं?
इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और पितृदोष जैसी बाधाएँ दूर होती हैं। साथ ही, यह आने वाली पीढ़ियों को भी पूर्वजों और परंपराओं से जोड़ता है।
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