भारतीय संस्कृति के विशाल और रंगीन पर्वों में, जहाँ कहीं दीपों का उजाला है, कहीं भक्ति का उत्कर्ष है और कहीं असत्य पर सत्य की विजय का उल्लास, वहीं एक ऐसा उत्सव भी है जो गहन दार्शनिकता और ब्रह्मांडीय संतुलन का प्रतीक है। यह है वामन जयंती, भगवान विष्णु के पाँचवें अवतार - वामन, बालक ब्राह्मण और विनम्र भिक्षुक का जन्मोत्सव।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाया जाने वाला यह पर्व, भले ही दीपावली या होली जैसी बाहरी धूमधाम से रहित हो, किंतु इसकी आध्यात्मिक प्रतिध्वनि अतुलनीय है। इस साल 4 सितंबर को वामन जयंती मनाई जाएगी। यह हमें स्मरण कराता है कि सच्ची शक्ति सदैव विनम्रता के वेश में प्रकट होती है और सच्चा वैभव सबकुछ भोगने में नहीं, बल्कि अपनी मर्यादा और ब्रह्मांडीय क्रम को पहचानने में है।
पौराणिक कथा: महाबली और वामन
वामन जयंती का मूल भागवत पुराण में वर्णित उस अमर कथा से जुड़ा है जो दान, अहंकार और समर्पण का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करती है।
महाबली का उत्कर्ष
कथा की शुरुआत होती है प्रह्लाद के पौत्र और असुरों के पराक्रमी राजा महाबली से। वे अन्य असुरों की भाँति केवल बल और वासना के प्रतीक नहीं थे, बल्कि एक न्यायप्रिय, दानी और लोकहितकारी शासक भी थे। उनके शासनकाल में प्रजा सुखी और सम्पन्न थी। किंतु उनके अद्वितीय सामर्थ्य और यज्ञबल से वे धीरे-धीरे देवताओं को भी परास्त करने लगे और तीनों लोकों - स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल पर अधिकार कर लिया।
इंद्र व अन्य देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे। उन्होंने निवेदन किया कि यद्यपि बली धर्मनिष्ठ हैं, लेकिन उनका वर्चस्व ब्रह्मांडीय संतुलन को भंग कर रहा है। तब भगवान विष्णु ने आश्वासन दिया कि वे स्वयं अवतार लेकर धर्म की रक्षा करेंगे।
वामन का अवतरण
महाबली नर्मदा तट पर भव्य अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। तभी एक छोटे कद का ब्राह्मण बालक, हाथ में छाता लिए, वहाँ पहुँचा। वह और कोई नहीं, स्वयं भगवान विष्णु ही वामन रूप में प्रकट हुए थे ।
उस दिव्य बालक की तेजस्विता देखकर राजा बली ने विनम्रतापूर्वक स्वागत किया और कहा कि वे उनकी इच्छा पूर्ण करेंगे। राजा बली के गुरु शुक्राचार्य ने पहचान लिया कि यह स्वयं भगवान विष्णु हैं और चेतावनी दी कि यह छल है, परंतु वचनबद्ध बली ने ब्राह्मण के आग्रह को न ठुकराने का निर्णय लिया।
तीन पगों में विश्व-विजय
वामन ने कहा - “हे राजन! मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए।”
सभा ठहाकों से गूँज उठी। इतनी नगण्य माँग पर बली सहर्ष तैयार हो गए। तभी वामन का रूप विराट हो गया और वे त्रिविक्रम कहलाए।
1. पहले पग में उन्होंने पूरी पृथ्वी नाप ली।
2. दूसरे पग से सम्पूर्ण स्वर्ग और ब्रह्मांड समा गया।
3. तीसरे पग के लिए कुछ शेष न रहा।
तब विनम्रता से बली ने अपना सिर झुकाकर कहा - “प्रभु, तीसरा चरण मेरे मस्तक पर रखें।”
भगवान विष्णु ने ऐसा ही किया। बली को सुतल लोक में स्थापित किया गया, किंतु उनके समर्पण और दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने आएँगे। आज भी यह पर्व केरल में ओणम के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु स्वयं उनके द्वारपाल भी बने।
कथा का दार्शनिक आयाम
1. यह प्रसंग केवल देव-असुर युद्ध की कथा नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक संदेशों का खजाना है।
2. अहंकार का दर्प: महाबली सद्गुणों से युक्त थे, किंतु सामर्थ्य के साथ उनमें सूक्ष्म अहंकार भी उत्पन्न हुआ। तीनों लोकों पर उनका अधिकार इस अहंकार का ही प्रतीक था।
3. वामन की विनम्रता: बौना ब्राह्मण वह चेतना है जो अहंकार को नष्ट कर संतुलन बहाल करती है।
तीन पगों का रहस्य:
1. पहला पग (भूः) भौतिक जगत और जाग्रत अवस्था का प्रतीक।
2. दूसरा पग (भुवः) मानसिक जगत और स्वप्न अवस्था का द्योतक।
3. तीसरा पग (सुवः) कारण जगत और गहन चेतना का प्रतिरूप।
समर्पण का महत्त्व: बली की हार वास्तव में उनकी विजय थी। अहंकार त्याग कर उन्होंने मोक्ष और ईश्वर की कृपा प्राप्त की।
वामन जयंती पर पूजन-विधि
भक्त इस दिन उपवास, प्रार्थना और दान-पुण्य द्वारा भगवान वामन की आराधना करते हैं।
1. व्रत: प्रातः से संध्या तक उपवास रखा जाता है। कुछ लोग फलाहार करते हैं, तो कई निर्जल उपवास करते हैं। संध्या के बाद पूजा एवं दान करके व्रत का समापन होता है।
2. अभिषेक व पूजा: वामन की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र और आभूषण अर्पित किए जाते हैं।
3. पाठ व मंत्र: इस दिन भागवत पुराण के वामन अवतार प्रसंग का श्रवण-कीर्तन, विष्णु सहस्रनाम व विशेष वामन मंत्रों का जाप अत्यंत शुभ माना जाता है।
4. दान: बली की दानशीलता के स्मरण में भोजन, वस्त्र, छाता और जूते दान करना पुण्यकारी है।
5. मंदिर दर्शन: विशेषकर कांचीपुरम के उलगालंदा पेरुमल मंदिर में त्रिविक्रम के विराट रूप का दर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आधुनिक जीवन में वामन जयंती का संदेश
आज के दौर में यह कथा हमारे लिए कई गहरे संदेश देती है -
1. विनम्रता बनाम अहंकार: सफलता के बावजूद विनम्र बने रहना ही वास्तविक महानता है।
2. वचन का पालन: बली की तरह अपने संकल्प और ईमानदारी पर अडिग रहना।
3. मर्यादा में रहकर जीवन: जो हमारा नहीं है, उस पर अधिकार न जमाना, बल्कि अपने कर्तव्य-क्षेत्र में संतोष और श्रेष्ठता खोजना।
4. आध्यात्मिक समर्पण: सच्चा सुख त्याग और समर्पण में है, संचय में नहीं।
निष्कर्ष:
वामन जयंती यह अद्भुत सत्य उजागर करती है कि ईश्वर का विराट स्वरूप कभी-कभी सबसे छोटे और साधारण रूप में प्रकट होता है।
यह दिन न केवल भगवान विष्णु के वामन अवतार की महिमा का स्मरण है, बल्कि महाबली के अटूट समर्पण और भक्ति का भी आदर है। जब हम इस पर्व को मनाते हैं, तो हमें भी अपने भीतर झाँककर अपने अहंकार को पहचानना और विनम्रता, धर्म और शरणागति की ओर तीन पग बढ़ाना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1. वामन जयंती कब मनाई जाती है?
उत्तर: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती मनाई जाती है।
प्रश्न 2. वामन अवतार में भगवान विष्णु ने क्या संदेश दिया?
उत्तर: इस अवतार के माध्यम से भगवान ने धर्म की स्थापना, अहंकार के त्याग और आत्मसमर्पण का संदेश दिया।
प्रश्न 3. वामन जयंती की पूजा विधि क्या है और इस दिन भक्त किस देवता की पूजा करते है?
उत्तर: इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के पाँचवें अवतार भगवान वामन की पूजा की जाती है और विष्णु मंत्र, विष्णु सहस्रनाम या वामन कथा का पाठ किया जाता है।