माँ चंद्रघंटा की उपासना नवरात्रि के तीसरे दिन करने का विधान है, इस साल चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन 11 अप्रैल 2024 को है। माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से देवी चंद्रघंटा तीसरा स्वरुप है माता के मस्तिष्क पर घंटे के आकार का अर्धचन्द्र सुशोभित है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है माता का रूप बहुत ही अलौकिक है, वह बाघ पर सवार रहती है उनकी दस भुजाएँ है जो की पुष्प, जपमाला और अलग-अलग शस्त्रों से सुशोभित रहती है।
माँ चंद्रघंटा से जुड़ी पौराणिक कथा
मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कड़ी तपस्या की थी लेकिन जब महादेव उनसे विवाह करने पहुचें तो बरात में भूत-प्रेत और अघोरियों को देखकर देवी पार्वती की माता मैना मूर्छित हो गई तब देवी पार्वती ने माँ चंद्रघंटा का स्वरुप लेकर महादेव से एक राजकुमार की भाति रूप धारण करने की सहजता से प्रार्थना की जिसे महादेव ने स्वीकार किया इसलिए माँ चंद्रघंटा को शान्ति और क्षमा की देवी माना जाता है।
अन्य प्रचलित कथा के अनुसार जब असुरों और दैत्यों का आतंक बढ़ गया था तब माँ चंद्रघंटा ने महिषासुर सहित कई असुरों का वध किया था।
माँ चंद्रघंटा की पूजा का महत्व
ज्योतिष के अनुसार माँ दुर्गा का चंद्रघंटा स्वरुप शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती है, इस दिन उपवास रखने और विधि-विधान से माता की पूजा करने से जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह को मजबूती मिलाती है साथ ही वीरता और साहस का वरदान प्राप्त होता है और माता अपने भक्तों की प्रेत-बाधाओं से रक्षा करती हैं।
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माँ चंद्रघंटा आरती
जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
मन की मालक मन भाती हो। चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए। शीश झुका कहे मन की बाता॥
पूर्ण आस करो जगत दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥
कर्नाटिका में मान तुम्हारा। नाम तेरा रटू महारानी॥
भक्त की रक्षा करो भवानी।
चैत्र नवरात्री के तृतीय दिवस की हमारी ओर से आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं।
