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शारदीय नवरात्रि 2025 - जानें माँ कूष्माण्डा की महिमा और महत्व

शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप माँ कूष्माण्डा को समर्पित होता है। माँ कूष्माण्डा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है क्योंकि इनके आठ हाथ हैं। इनकी उपासना से भक्त के जीवन में सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और तेजस्विता का संचार होता है। वर्ष 2025 में शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन 26 सितम्बर 2025, शुक्रवार को पड़ेगा, और इसी दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाएगी।

 

कहा जाता है कि माँ कूष्माण्डा ने अपनी मंद मुस्कान से सृष्टि की रचना की थी, इसलिए इन्हें सृष्टि की आद्यशक्ति माना जाता है। जो भी साधक सच्चे मन से इनकी उपासना करता है, उसके जीवन के सारे अंधकार दूर होकर नया उजाला आता है।

 

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माँ कूष्माण्डा की महिमा

 

1. सृष्टि की सर्जक: मान्यता है कि जब ब्रह्मांड चारों ओर से शून्य था, तब माँ कूष्माण्डा ने अपनी दिव्य मुस्कान से अंडज ब्रह्मांड की रचना की।

 

2. अष्टभुजा देवी: माँ के आठ हाथों में धनुष-बाण, कमल, अमृतकलश, चक्र, गदा, जपमाला और अन्य दिव्य शस्त्र होते हैं।

 

3. आरोग्य प्रदाता: कहा जाता है कि माँ कूष्माण्डा की उपासना से रोग और शोक दूर होते हैं तथा स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

 

4. तेजस्विता की देवी: इनके पूजन से आत्मविश्वास और ऊर्जा में वृद्धि होती है।

 

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माँ कूष्माण्डा पूजा 2025: तिथि और मुहूर्त

 

1. पूजा तिथि: 26 सितम्बर 2025, शुक्रवार

 

2. नवरात्रि का दिन: चौथा दिन

 

शुभ मुहूर्त (पूजा का समय):

 

1. प्रातः पूजन मुहूर्त: 06:08 AM से 08:25 AM

 

2. अभिजीत मुहूर्त: 11:52 AM से 12:40 PM

 

3. सायं पूजन मुहूर्त: 04:55 PM से 06:30 PM

 

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पूजा की विधि

 

माँ कूष्माण्डा की पूजा करने के लिए भक्तजन विशेष विधि-विधान का पालन करते हैं।

 

1. आवश्यक सामग्री

 

1. स्वच्छ चौकी और लाल या पीला कपड़ा

 

2. माँ कूष्माण्डा की प्रतिमा या चित्र

 

3. कलश स्थापना के लिए मिट्टी, जल, आम के पत्ते, नारियल

 

4. धूप, दीपक, रोली, अक्षत, पुष्प

 

5. गन्ना, खरबूजा, कद्दू, बिल्वपत्र, मालपुए और फल

 

6. सफेद या नारंगी रंग के पुष्प

 

7. नैवेद्य (खीर, मालपुआ, मिश्री आदि)

 

2. पूजा क्रम

 

1. सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।

 

2. चौकी पर लाल/पीला कपड़ा बिछाकर माँ की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

 

3. कलश स्थापना कर आम के पत्तों और नारियल से सजाएँ।

 

4. धूप-दीप जलाकर माँ का आह्वान करें।

 

5. माँ को अक्षत, रोली, पुष्प और भोग अर्पित करें।

 

6. विशेष रूप से मालपुआ का भोग लगाएँ क्योंकि यह माँ कूष्माण्डा को प्रिय है।

 

7. माँ के आठ हाथों में उपस्थित शस्त्रों का ध्यान करते हुए “ॐ कूष्माण्डायै नमः” मंत्र का जाप करें।

 

8. अंत में आरती कर प्रसाद बाँटें।

 

माँ कूष्माण्डा से जुड़ी मान्यताएँ

 

माँ कूष्माण्डा से जुड़ी अनेक मान्यताएँ हैं जो उनके स्वरूप और शक्ति को प्रकट करती हैं। इन्हें अष्टभुजा देवी कहा जाता है क्योंकि इनके आठ हाथ हैं जिनमें विभिन्न शस्त्र और वस्तुएँ धारण की गई हैं, जो यह संकेत देती हैं कि देवी अपने भक्तों को हर प्रकार से शक्ति, संरक्षण और आशीर्वाद प्रदान करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ कूष्माण्डा का निवास सूर्य मण्डल के भीतर माना गया है, जहाँ वे अपने दिव्य तेज और ऊर्जा से सम्पूर्ण ब्रह्मांड का पोषण करती हैं। सूर्य की भांति ही वे असीम ऊर्जा की प्रतीक हैं और यही कारण है कि उनकी उपासना से जीवन में नई शक्ति और आत्मविश्वास का संचार होता है। यह भी विश्वास किया जाता है कि माँ की पूजा से घर में कभी अन्न-धन की कमी नहीं रहती और परिवार में समृद्धि व सुख-शांति का वास होता है। माँ कूष्माण्डा को स्वास्थ्य और आरोग्य की देवी भी कहा जाता है, अतः जो व्यक्ति शारीरिक रोगों या मानसिक कष्टों से पीड़ित होते हैं, उनके लिए इनकी आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है। माँ की कृपा से रोगों का नाश होता है और साधक को मानसिक शांति, स्थिरता और दीर्घायु का वरदान मिलता है। भक्तों का यह भी मानना है कि माँ कूष्माण्डा की उपासना करने से न केवल नकारात्मक ऊर्जाएँ समाप्त होती हैं बल्कि साधक के जीवन में सकारात्मक विचार और आत्मबल की वृद्धि होती है। इसलिए शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन इनकी पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है, क्योंकि इस दिन की गई साधना से जीवन में सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित होती है।

 

माँ कूष्माण्डा की पूजा का आध्यात्मिक महत्व

 

1. ऊर्जा का संचार: इनके पूजन से जीवन में उत्साह और ऊर्जा आती है।

 

2. सकारात्मकता: माँ की आराधना से नकारात्मक ऊर्जा दूर होकर सकारात्मक वातावरण का निर्माण होता है।

 

3. ज्ञान और तेज: साधक को तेजस्विता और आत्मबल की प्राप्ति होती है।

 

4. समृद्धि और आरोग्य: आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और रोगों से मुक्ति मिलती है।

 

माँ कूष्माण्डा का ध्यान मंत्र

 

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

 

इस मंत्र का जाप करने से मानसिक शांति और दिव्य ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

 

निष्कर्ष

 

माँ कूष्माण्डा की पूजा शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन करना विशेष रूप से फलदायी माना गया है। वर्ष 2025 में यह शुभ अवसर 26 सितम्बर, शुक्रवार को आएगा। इस दिन श्रद्धा और भक्ति से माँ की उपासना करने पर जीवन से अंधकार दूर होता है और स्वास्थ्य, समृद्धि व सुख-शांति का वास होता है। माँ कूष्माण्डा की कृपा से साधक के जीवन में नए अवसर और प्रगति के द्वार खुलते हैं।

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

 

Q1. माँ कूष्माण्डा की पूजा कब करनी चाहिए?

 

माँ कूष्माण्डा की पूजा शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। वर्ष 2025 में यह तिथि 26 सितम्बर 2025, शुक्रवार को है।

 

Q2. माँ कूष्माण्डा को कौन सा भोग प्रिय है?

 

माँ कूष्माण्डा को विशेष रूप से मालपुआ का भोग प्रिय है। इसके अतिरिक्त कद्दू, बिल्वपत्र और सफेद पुष्प अर्पित करने से भी देवी प्रसन्न होती हैं।

 

Q3. माँ कूष्माण्डा की पूजा से क्या लाभ होता है?

 

माँ की उपासना से स्वास्थ्य लाभ, आत्मविश्वास में वृद्धि, रोगों से मुक्ति, समृद्धि और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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